Hindi Diwas 2023: देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. इस दिन भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था. संविधान में लिखा गया था कि संघ को हिंदी के विस्तार को आगे बढ़ाना चाहिए. हालांकि हिंदी को लेकर पिछले कई दशकों से अलग-अलग बहस चलती रही है. हिंदी पर बहस के बीच हमेशा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का ऐतिहासिक भाषण याद किया जाता है. जो उन्होंन संयुक्त राष्ट्र में दिया था.
हिंदी से गूंज उठा था यूएन
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी के कई भाषण अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं, हिंदी दिवस के मौके पर भी उनका यूएन में दिया गया भाषण हमेशा याद किया जाता है. जब वाजपेयी ने यूएन के मंच से हिंदी में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था. उनके इस दमदार भाषण की जमकर तारीफ हुई थी. क्योंकि ये पहला मौका था, जब हिंदी की गूंज संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सुनाई दी थी.
वाजपेयी का दमदार भाषण
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण की शुरुआत 'मैं भारत का संदेश लेकर आया हूं...' से की थी. 14 अक्टूबर 1977 को वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में अपना भाषण दिया. जिसमें उन्होंने कहा, "मैं भारतीय जनता की ओर से राष्ट्रसंघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं. मैं राष्ट्रसंघ में भारत की जड़ास्था को पुन: व्यक्त करना चाहता हूं. जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल 6 महीने हुए हैं. फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं. भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुन: प्रतिष्ठित हो गए हैं. जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था, वह दूर हो गया है. ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे ये सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा."
विदेश मंत्री के तौर पर बोलते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में आगे कहा, हमारी वसुधेव कुटुंबकम की धारणा काफी पुरानी है, भारत में सदा से हमारा विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है. अनेक कष्टों के बाद इस सपने के साकार होने की संभावना है. यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्तता के बारे में नहीं सोच रहा हूं, आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है. अंत में हमारी सफलता और असफलता एक ही मापदंड से मापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज, हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की गारंटी देने में प्रयत्नशील हैं.
इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने रंगभेद से लेकर भारत की ताकत और सभी देशों से मैत्रीपूर्ण संबंधों का जिक्र किया. उनके इस भाषण ने भारत के साथ-साथ हिंदी का भी मान बढ़ाने का काम किया था.