जूतामार से लेकर छतरी होली तक... भारत में इन अनोखे तरीकों से खेली जाती है HOLI
यह होली मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले के पटोरी अनुमंडल क्षेत्र के पांच पंचायतों वाले एक बड़े से गांव धमौन में दशकों से पारंपरिक रूप से मनाई जाती है. इसके बारे में जानना चाहते हैं तो पूरा पढ़ें.
भारत में होली एक ऐसा त्योहार है जो इस देश के हर कोने-कोने में मनाया जाता है. इस त्योहार की महानता इतनी है कि इस दिन दुश्मन को भी माफ कर के गले लगाया जाता है. देश भर में होली भले ही रंगों और गुलाल से खेला जाता हो, लेकिन कई जगहें ऐसी हैं जहां होली का यह त्योहार बड़े अनोखे तरीके से मनाया जाता है. इस आर्टिकल में हम आपको भारत में ऐसे ही अनोखे तरीकों से मनाए जाने वाले होली के त्योहार के बारे में बताएंगे.
जूतामार होली
ये होली सिर्फ उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होती है. यहां होली वाले दिन सबसे अनोखी होली खेली जाती है. दरअसल, इस दिन शहर के लोग एक जुलूस निकालते हैं जिसमें एक इंसान को लाट साहब बना कर भैंसे पर बिठा दिया जाता है और फिर उसे जूतों से और झाड़ू से मारते हुए (प्रतिकात्मक रूप से) पूरे शहर में घुमाया जाता है. कहा जाता है कि इस होली की शुरुआत अंग्रेजों के प्रति जनता के गुस्से को बाहर निकालने के लिए किया गया था. दरअसल, जब भारत में अग्रेजों का राज था तो वह देश की जनता पर बहुत जुल्म करते थे, जनता असहाय थी और वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाती थी. इसलिए इस गुस्से को जाहिर करने के लिए लोगों ने होली के दिन को चुना और इस दिन एक व्यक्ति को लाटसाहब (अंग्रेजों के जैसे वेशभूषा) बना कर उसे भैंसे पे बिठा कर उसको जूतों और झाड़ू से मारते थे. देश अंग्रेजों से तो आजाद हो गया, लेकिन शाहजहांपुर वाले आज भी इस परंपरा को वैसे ही निभा रहे हैं.
छतरी होली
यह होली मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर जिले के पटोरी अनुमंडल क्षेत्र के पांच पंचायतों वाले गांव धमौन में दशकों से पारंपरिक रूप से मनाई जाती है. होली के दिन इस इलाके में जो हुरिहार (वो लोग जो घूम-घूम कर पूरे इलाके में होली खेलते हैं) आते हैं तो वह अपने साथ बांस की बनी एक छतरी भी ले कर आते हैं. इस वजह से इसे छतरी वाली होली भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इस इलाके में हुरिहारों की कई टोलियां होती हैं और सबसे पास एक से बढ़कर एक छतरी होती है. इस होली को देखने दूर दूर से लोग इस इलाके में पहुंचते हैं.
भस्म वाली होली
यह खास होली बनारस यानी वाराणसी में मनाई जाती है. कहा जाता है कि इस होली की शुरुआत खुद भगवान शिव ने की थी. मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के अगले दिन बाबा विश्वनाथ ने महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अपने गणों के साथ होली खेली थी. यही वजह है कि इस घाट पर हर साल इस दिन देश भर के साधु संत इकट्ठा होते हैं और एक दूसरे को भस्म लगा कर होली खेलते हैं. इस होली को देखने और इसमें भाग लेने पूरी दुनिया से लोग वाराणसी में इकट्ठा होते हैं और इसका आनंद लेते हैं.
लट्ठमार होली
यह होली पूरी दुनिया में सिर्फ बरसाने में खेली जाती है. बरसाने में होली रंगों के साथ तो खेली ही जाती है, लेकिन इस दिन महिलाओं के हाथ में लाठी होती है और वह होली खेलने आए पुरुषों पर खूब लाठी बरसाती हैं. हालांकि, इससे बचने के लिए पुरुषों के पास एक ढाल भी होती है, ताकि इस त्योहार में किसी को भी चोट ना पहुंचे. कहा जाता है कि यह होली राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है, इसलिए ऐसी होली यहां हर साल सदियों से होती आ रही है.
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