Air Bag: एयर बैग को लेकर सड़क परिवहन मंत्रालय ने एक नया नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसके मुताबिक, 6 बैग को अनिवार्य नहीं करने की बात कही गई है. एयर बैग हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है. क्या कभी आपने सोचा है कि वह कैसे काम करता है. एयर बैग को आखिर कैसे बनाया जाता है कि कार के सीट पर जब ड्राइवर बैठता है, तब वह दिखता नहीं है. आज की स्टोरी में हम इसके बारे में जानेंगे, साथ ही यह भी समझेंगे कि क्या एयर बैग के लिए कोई नियम भी है? और दुर्घटना के स्थिति में यह ऑटोमेटिक कैसे वर्क शुरू करता है.
कैसे तैयार होता है एयर बैग?
एयर बैग का टार्गेट यात्री की आगे की गति को एक सेकंड के एक अंश में यथासंभव समान रूप से धीमा करना है. एयर बैग के तीन भाग होते हैं जो इस उपलब्धि को पूरा करने में मदद करते हैं. बैग स्वयं एक पतले, नायलॉन के कपड़े से बना होता है, जिसे स्टीयरिंग व्हील या डैशबोर्ड या हाल ही में सीट या दरवाजे में मोड़ा जाता है. सेंसर जो बैग को फुलाने के लिए कहता है. इंफ्लेशन तब होती है जब 10 से 15 मील प्रति घंटे (16 से 24 किमी प्रति घंटे) की गति से ईंट की दीवार से टकराने के बराबर टकराव बल होता है.
जब बड़े पैमाने पर बदलाव होता है तो एक यांत्रिक स्विच फ़्लिप हो जाता है जो विद्युत संपर्क को बंद कर देता है और सेंसर को बताता है कि दुर्घटना हुई है. सेंसर माइक्रोचिप में निर्मित एक्सेलेरोमीटर से जानकारी प्राप्त करते हैं. एयर बैग की इन्फ्लेशन सिस्टम नाइट्रोजन गैस का उत्पादन करने के लिए पोटेशियम नाइट्रेट (KNO3) के साथ सोडियम एजाइड (NaN3) की प्रतिक्रिया करती है. नाइट्रोजन के गर्म विस्फोट एयर बैग को फुलाते हैं.
गाड़ी चलाते वक्त सावधानी जरूरी
ट्रैफिक पुलिस हमेशा नियम को लेकर जागरुक करती रहती है. अगर गाड़ी चलाते वक्त कोई नियम को फॉलो नहीं करता है तो उसके कार या बाइक का चालान काट लिया जाता है. ऐसे में सावधानी से गाड़ी ड्राइव करना बेहद जरूरी हो जाता है.
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