किसे मिलेगी अतुल सुभाष के बेटे की कस्टडी, निकिता सिंघानिया या AI इंजीनियर के घरवालों को? जानें कानून से जुड़ी हर बात
अतुल सुभाष की मां ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और अपने पोते की कस्टडी की मांग की है. अब सवाल यह उठता है कि क्या अतुल सुभाष के बेटे की कस्टडी उसके दादा-दादी को सौंपी जा सकती है?
Atul Subhash Nikita Singhania Child Custody: AI इंजीनियर अतुल सुभाष सुसाइड केस में नया ट्विस्ट आ गया है. मामला अब अतुल सुभाष और पत्नी निकिता सिंघानिया के साढ़े चार साल के बच्चे की कस्टडी से जुड़ा है. दरअसल, अतुल सुभाष की मां ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और अपने पोते की कस्टडी की मांग की है. उन्होंने कहा है कि बच्चा कहां है, ये किसी को भी नहीं पता है. लिहाजा निकिता सिंघानिया और उनके घरवालों से पूछताछ कर बच्चे की कस्टडी उन्हें सौंपी जाए.
अब सवाल यह उठता है कि क्या अतुल सुभाष के बेटे की कस्टडी उसके दादा-दादी को सौंपी जा सकती है? क्या बच्चे की उम्र का उसकी कस्टडी से लेना-देना है? इस मामले में कानूनी पेंच क्या हैं? अतुल सुभाष और निकिता सिंघानिया के परिवार के पास बच्चे की कस्टडी को लेकर क्या रास्ता है? चलिए जानते हैं...
कस्टडी क्या है और इसकी जरूरत क्यों?
बच्चे की कस्टडी की बात करें तो यहां इसका मतलब उसके पालन-पोषण और निगरानी से है. माता-पिता का तलाक होने की स्थिति में बच्चा किसके पास रहेगा यह कोर्ट तय करता है और बच्चे के हितों को देखते हुए उसकी कस्टडी किसी एक को सौंपता है. कोर्ट यह तय करता है कि कानूनी तौर पर बच्चे की देखभाल के लिए माता-पिता में कौन बेहतर तरीके से कर सकता है.
कितने तरह की होती है कस्टडी
फिजिकल कस्टडी: माता या पिता में से कोई एक प्राइमरी गार्जियन बनता है, बच्चा उसी के साथ रहता है. दूसरे पेरेंट के लिए कोर्ट बच्चे से मिलने की तारीख तय करता है.
जॉइंट कस्टडी: बच्चों के माता-पिता को रोटेशन के आधार पर कस्टडी मिलती है. बच्चा एक समय के अंतराल पर बारी-बारी से दोनों के पास रह सकता है.
लीगल कस्टडी: माता-पिता में से कोई एक बच्चे के 18 साल के होने तक उसके जीवन से जुड़े फैसले ले सकता है.
सोल चाइल्ड कस्टडी: अगर माता-पिता में से कोई एक अनफिट है या फिर किसी एक से बच्चे को खतरा है, तो ऐसी स्थिति में दूसरे पक्ष को कस्टडी दी जाती है.
थर्ड पार्टी कस्टडी: माता-पिता दोनों की मृत्यु या दिमागी हालत ठीक न होने पर थर्ड पार्टी कस्टडी दी जाती है. यानी किसी तीसरे पक्ष को बच्चे की जिम्मेदारी मिलती है. यह कस्टडी ज्यादातर बच्चे के नाना-नानी या फिर दादा-दादी को दी जाती है.
कस्टडी से जुड़ी जरूरी बातें:
- बच्चे पर माता-पिता दोनों का बराबर हक है. हालांकि, अगर बच्चा 5 साल से कम उम्र का है, तो इस स्थिति में बच्चे की मां को कस्टडी मिलती है.
- अगर बच्चा 5 साल का है और पिता के साथ रहना चाहता है, तो कोर्ट बच्चे के हितों की जांच कर पिता को कस्टडी सौंप सकता है.
- बच्चे की मां का किसी अन्य से फिजिकल रिलेशन, मंद बुद्धि होने या फिर बच्चे को टॉर्चर करने पर पिता को कस्टडी मिल सकती है.
- बच्चे की उम्र 9 साल से ज्यादा होने पर बच्चे से उसकी मर्जी पूछकर कस्टडी सौंपी जाती है.
- कस्टडी देते समय कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे की परवरिश कौन अच्छे से कर सकता है.
- अगर बच्चा बड़ा है तो अधिकतर मामलों में उसकी कस्टडी पिता को सौंपी जाती है.
- बेटी के मामले में कस्टडी अक्सर मां को मिलती है.
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