ज्वालामुखी का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं. क्योंकि ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा अपने आस-पास के सैंकड़ों किलोमीटर दूर इलाकों को नष्ट करने की क्षमता रखता है. क्या आप जानते हैं कि ज्वालामुखी सुरंगे पृथ्वी से कितने किलोमीटर अंदर तक जाती है. आज हम आपको बताएंगे कि ज्वालामुखी की सुरंग कितने किलोमीटर अंदर तक अपना रास्ता बनाती है. 


ज्वालामुखी कब और क्यों फटता


सबसे पहले ये जानते हैं कि ज्वालामुखी आखिर कैसे फटता है. बता दें कि ज्वालामुखी एक तरह का पहाड़ होता है, जिसके नीचे ढेर सारा पिघला हुआ लावा होता है. दरअसल पृथ्वी के भीतर जियोथर्मल एनर्जी भारी मात्रा में होती है. ऐसे में इस एनर्जी के कारण पत्थर पिघल कर लावा में बदल जाते है. यही लावा जब ऊपर की ओर दबाव बनाता है, तो पहाड़ फट जाता है और वह ज्वालामुखी कहलाता है. विज्ञान के मुताबिक पृथ्वी के भीतर जब टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में घर्षण करते हैं, तो उससे उत्पन्न होने वाली एनर्जी से पत्थर पिघलने लगते हैं. जिसके बाद यही पिघले हुए पत्थर और गैस ऊपर की ओर दबाव पैदा करते हैं, जिससे पहाड़ फट जाता है और ज्वालामुखी में बदल जाता है.


ज्वालामुखी की सुरंग


ज्वालामुखी फटने के बाद उसकी सुरंग कितनी अंदर तक पहुंच सकती है, इसको लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता है. क्योंकि ज्वालामुखी जितना ताकतवर होगा, उसमें से उतना ही अधिक लावा निकलेगा और वो दूर तक जाएगा. आसान भाषा में आप समझ सकते हैं कि ज्वालामुखी का पहाड़ जितना ताकतवर होगा, उसमें जितना ज्यादा लावा मौजूद होगा, वो अपने दबाव से उतना लंबा सुरंग बना सकता है. ये 10 किलोमीटर, 30 किलोमीटर से भी ज्यादा हो सकता है. वहीं जब उस पहाड़ पर दबाव बनेगा तो उसमें विस्फोट होगा, जिससे उसमें से उतना ही लावा निकलेगा.


सुपर वॉलकैनो 


बता दें कि शक्तिशाली और बड़े ज्वालामुखी को ही सुपर वॉलकैनो कहा जाता है. आसान भाषा में कहें तो जिस ज्वालामुखी से एक जगह पर 240 घन मील से अधिक सामग्री में विस्फोट होता है, उसे सुपर वॉलकैनो कहते हैं. जानकारी के मुताबिक आखिरी बार इतने बड़े ज्वालामुखी में साल 1538 में विस्फोट हुआ था. ये विस्फोट इतना खतरनाक था कि इसकी वजह से नेपल्स की खाड़ी में एक नया पहाड़ बन गया था.


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