अक्सर पिंक कलर को लड़कियों के कलर से जोड़कर देखा जाता है. कई बार कहा भी जाता है कि पिंक कलर लड़कियों का कलर है. ऐसे में हर बार आपके मन में ये सवाल उठता होगा कि आख़िर पिंक कलर को लड़कियों का कलर बनाया किसने और कैसे धीरे-धीरे लड़कियों का कलर कहा जाने लगा? तो बता दें कि इसके तार हिटलर से जुड़ी है. चलिए इसका इतिहास जानते हैं.
कैसे लड़कियों का कलर बन गया पिंक?
बात पहले विश्व युद्ध की है. साल 1914 का दौर था. एक तरफ़ फ़्रांस की सेना थी तो वहीं ब्रिटिश नर्सों की वर्दी भी नीली थी. उस वक़्त लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए नीला ही रंग था.
बात हिटलर के नाजी जर्मनी की है. बंदियों को रखने वाले ‘कंसंट्रेशन कैंप’ में पहचान के लिए लोगों को अलग-अलग चिन्ह दिए जाते थे. उस समय यहूदियों को ‘यलो स्टार’ तो वहीं होमोसेक्सुअल्स को पिंक ट्रायंगल दिया गया. बस फिर क्या था इसके बाद से गुलाबी रंग को होमोसेक्सुऐलिटी से जोड़ा जाने लगा. कहा ये भी जाने लगा कि ये गैर मर्दों की पहचान है. इस सब के बारे में कंसंट्रेशन कैंप सर्वाइवर हाइंज हीगर बुक किताब ‘द मेन विथ द पिंक ट्रायंगल’ में डिटेल में बताते हैं. इसके बाद पिंक कलर मर्दों से दूर होता गया और इसे लड़कियों का कलर माना जाने लगा.
कहानियां और भी हैं
पिंक कलर से जुड़ी कहानियां और भी हैं. जैसे कहा जाता है कि 1953 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी आइज़नहावर की पत्नी मेमी एक फ़ंक्शन में पिंक कलर की ड्रेस और नेकलेस पहनकर गई थीं, जो काफ़ी पॉपुलर हुई थी. मेमी ज़्यादातर पिंक ही पहना करती थीं. उन्हें कई महिलाएं फ़ॉलो भी करती थीं. इसके बाद भी पिंक कलर महिलाओं से जुड़ गया. साथ ही फ़िल्मों और एडवरटाइजमेंट में भी लड़कियों को पिंक कलर में दिखाया जाने लगा. जिसके बाद ये ख़ासा पॉपुलर हो गया था.
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