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लक्षद्वीप कैसे बन गया इस्लाम बहुल राज्य? कभी यहां हिंदू-बौद्ध थे सबसे ज्यादा

लक्षद्वीप में इस्लाम की शुरुआत 631 ई. में एक अरब सूफी उबैदुल्लाह द्वारा की गई थी. जबकि, सरकारी दस्तावेजों में लक्षद्वीप में इस्लाम के उदय की बात 7वीं शताब्दी से की जाती है.

पीएम नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद पूरे देश में इस राज्य की चर्चा है. लोग अब इस राज्य को एक बेहतरीन टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर देख रहे हैं. हालांकि, बहुत से लोग अभी भी इस राज्य के इतिहास और यहां की आबादी के बारे में नहीं जानते. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि इस राज्य का इतिहास क्या है और यहां कैसे पहले हिंदू और बौद्ध लोगों की संख्या ज्यादा थी और अब यहां इस्लाम को मानने वाले लोग ज्यादा रहते हैं.

पहले लक्षद्वीप के बारे में जानिए

लक्षद्वीप भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है. ये राज्य 32 द्वीपों का एक सुंदर सा समूह है. हालांकि, अब यहां 36 द्वीप हो गए हैं. इस राज्य की राजधानी कावारत्ती है और यहां की 96 फीसदी आबादी इस्लाम धर्म को मानती है. लेकिन, इस्लाम के आने से पहले इस राज्य में हिंदू और बौद्ध धर्म के लोग ज्यादा थे.

कब आया यहां इस्लाम

लक्षद्वीप में इस्लाम की शुरुआत 631 ई. में एक अरब सूफी उबैदुल्लाह द्वारा की गई थी. जबकि, सरकारी दस्तावेजों में लक्षद्वीप में इस्लाम के उदय की बात 7वीं शताब्दी से की जाती है. यहां इस्लाम के फैलने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यहां के एक राजा चेरामन पेरुमल द्वारा इस्लाम को कुबूल करने को माना जाता है. दरअसल, 825 ई. में उन्होंने इस्लाम धर्म को अपना लिया था.

केंद्र शासित राज्य कब बना लक्षद्वीप

1947 में आजादी के बाद इस राज्य को 1956 में भाषा के आधार पर मद्रास प्रेसीडेंसी में मिला दिया गया. इसके बाद फिर इसे केरल राज्य में शामिल किया गया. हालांकि, बात यहां भी नहीं बनी तो उसी साल इस छोटे से राज्य को केंद्र शासित राज्य बना दिया गया. शुरुआती समय में इस राज्य को लैकाडिव, मिनिकॉय और आमिनदीवी के नाम से जाना जाता था. लेकिन 1971 में इस राज्य का नाम लक्षद्वीप रखा गया.

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