देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी 23 जुलाई के दिन आम बजट पेश करेंगी. इस बजट में सभी मंत्रालय का खर्च और कमाई का लेखा-जोखा रहेगा. भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को संसद जाने से पहले दही खिलाया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले के समय राजा-महाराजा बजट कैसे पेश करते थे.   


देश का बजट 


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी 23 जुलाई को संसद में बजट पेश कर रही हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजा महाराजाओं के समय यहां पर बजट कौन पेश करता था और इसके लिए क्या नियम होते थे. सबसे पहले जानते हैं कि बजट शब्द कहां से आया है. बता दें कि बजट शब्द एक पुराने फ्रेंच शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब छोटा सा बैग होता है. शायद उस वक्त एक छोटे से बैग में पूरी दौलत समा जाती होगी या फिर उस वक्त के मंत्री एक छोटे से बैग में अपनी अहम घोषणाओं को लपेटकर लाया करते होंगे. इसलिए इस शब्द का इस्तेमाल हुआ था. अब इस छोटे से बैग की जगह उस सूटकेस ने ले ली है, जो बजट से पहले वित्तमंत्री के हाथ में नज़र आता है.


राजाओं के बजट


बता दें कि राजा-महराजाओं के वक्त भी बजट पेश होता था. जैसे अकबर के नौ रत्नों में से एक राजा टोडरमल को अनाधिकारिक तौर पर पहला वित्तमंत्री कहा जाता है. उस दौर में कैलेंडर अलग हुआ करते थे, लेकिन अभी की तरह तब भी साल भर के राजस्व और व्यय का हिसाब जनता दरबार में रखा जाता था. इसी तरह के दरबार में अकबर के शासनकाल के वित्तमंत्री राजा टोडरमल भूमि सुधार कार्यक्रम लेकर आए थे. उस दौरान टोडरमल ने ज़मीन को मापने की पहल की थी. ज़मीन और फसल मापने की जरूरत राजस्व और कर के नए तरीके लाने की वजह से खड़ी हुई थी. क्योंकि सदियों से अनाज उत्पादन राजस्व का अहम जरिया रहा है. 


इसके अलावा1538 से 1545 तक उत्तर भारत पर सूरी साम्राज्य था. अकबर से पहले राजा टोडरमल ने शेर शाह सूरी के राज्यकाल में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था. दहशाला का खाका भी शेर शाह सूरी के वक्त ही खींच दिया गया था, जिसे अकबर के दौर में अमली जामा पहनाया गया था. वहीं शेर शाह सूरी को सरकारी वित्त के सही इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. एशिया की सबसे लंबी और पुरानी सड़क में से एक ग्रांड ट्रंक रोड का श्रेय सूरी को ही दिया जाता है. राजस्व का इस्तेमाल सड़क जैसी मूलभूत जरूरत के निर्माण में करने के लिए शेर शाह सूरी को याद किया जाता है. चुंगी या टॉल टैक्स का मौजूदा रूप दरअसल सूरी के समय शुरू हुआ था. 


इसके अलावा वस्तु विनिमय (बार्टर) की जगह नगदी लेन देन की व्यवस्था के लिए भी शेर शाह सूरी के दौर का नाम लिया जाता है. रुपया भी सूरी की ही देन है. पहले ‘रुपया’ शब्द किसी भी तरह के चांदी के सिक्के के लिए इस्तेमाल होता था. लेकिन सूरी साम्राज्य के दौर में रुपया उस चांदी के सिक्के के लिए इस्तेमाल होने लगा था,जिसका वजन 11.53 ग्राम का हुआ करता था. मोहुर नाम के सोने का सिक्का (169 ग्रेन) और पैसा कहे जाने वाले तांबे के सिक्के भी सूरी सरकार के दौरान ही ढाले गए थे. सूरी साम्राज्य का यही सिक्का प्रणाली मुगलों ने भी जारी रखा था.


रक्षा बजट


महाराजाओं के समय भी अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बजट निर्धारित किया जाता था. ब्रिटिश राज से पहले भी भारत में रक्षा मामलों पर सबसे ज्यादा खर्च करने का प्रावधान था. शेर शाह सूरी से लेकर अकबर और उनके आगे के दौर में भी बजट का 40 प्रतिशत हिस्सा रक्षा क्षेत्र के लिए रखा जाता था. क्योंकि उस दौर में युद्ध की संभावनाएं ज्यादा हुआ करती थी और यह प्रचलन भारत की आजादी के बाद भी काफी वक्त तक चला था. 


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