देश के कई शहरों में मुख्य चौक पर आपको एक घंटाघर मिल जाएगा. इस घंटाघर पर लगी घड़ी दशकों से चलती आ रही होती हैं. लेकिन क्या कभी आपने जानने की कोशिश की कि ये घड़ी बैटरी से चलती है या फिर किसी चाबी से चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये बड़ी-बड़ी घड़ियां चलती कैसे हैं.


कैसे चलती हैं ये घड़ियां


जब भी हम कभी घंटाघर देखते हैं तो हमारे मन में ये सवाल जरूर आता है कि आखिर इतनी बड़ी-बड़ी घड़ियां अपने आप चलती कैसे हैं. क्या इनमें कोई बैटरी लगी होती है या फिर ये बिजली से चलती हैं. आपको बता दें, अगर आप ऐसा सोचते हैं तो गलत हैं आप. दरअसल, घंटाघर की दीवारों पर जो घड़ियां लगी होती हैं, वो पेंडुलम आधारित गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पर काम करती हैं. हालांकि, इन घड़ियों को चलाने के लिए समय-समय पर चाबी भरनी पड़ती है.


इनमें अलार्म कैसे बजता है?


घंटाघर में लगी कुछ घड़ियों में अलार्म भी बजता है. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये कैसे होता है. दरअसल, इन घड़ियों को चलाने के लिए इनमें हफ्ते में दो बार चाबी भरी जाती है. अलार्म वाली घड़ियों में ती चाबी भरी जाती है. एक चाबी भरने पर घड़ी समय बताती है और दूसरी चाबी भरने पर घड़ी में 15 मिनट बाद अलार्म बजता है. वहीं तीसरी चाबी भरने पर घड़ी में हर एक घंटे बाद अलार्म बजता है. पहले के जमाने में जब हर घर में घड़ी नहीं होती थी, तो शहर कस्बों के लोग इन्हीं घड़ियों के अलार्म से जानते थे कि इस वक्त कितने बजे हैं.


देश का सबसे ऊंचा घंटाघर


देश के सबसे ऊंचे घंटाघर की बात करें तो ये राजस्थान के धौलपुर में है. यहां इसे निहाल टावर कहा जाता है. इस घंटाघर में लगी घड़ी का वजन 100 या 200 किलो नहीं बल्कि 600 किलो है. लाल पत्थरों से बना ये घंटाघर दूर से ही दिख जाता है. इस घंटाघर को बनवाने की शुरूआत महाराजा निहाल सिंह ने की थी, लेकिन इसका काम महाराजा राजाराम सिंह के समय में पूरा हुआ.


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