हमने जब से होश संभाला है तभी से अक्सर एक खबर जरुर सुनी है, कि डॉलर के मुकाबले रुपये में इतनी गिरावट आई या फिर डॉलर के मुकाबले रुपया इतना गिरा. हमारे देश में आजादी के बाद कई सालों तक रुपये को मजबूत बनाने की कोशिश की गई, लेकिन देश की आर्थिक स्थिति को बनाने की कोशिश में रुपया डॉलर के मुकाबले गिर गया. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर रोज-रोज डॉलर और रुपये का मुकाबला कैसे होता है? चलिए जान लेते हैं.


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डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?


किसी भी देश की करेंसी की कीमत अर्थव्यवस्था के बेसिक सिद्धांत, डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी. वहीं जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी भी कीमत कम होगी.


इसके अलावा करेंसी की कीमत को तय करने का एक दूसरा तरीका भी होता है, जिसे Pegged exchange Rate कहते हैं. इसका मतलब होता है फिक्स्ड एक्सचेंज रेट. इसमें एक देस की सरकार किसी दूसरे देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. ये काम आमतौर पर व्यापार को बढ़ाने और महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. उदाहरण के तौर पर देथें को नेपाल ने भारत के साथ फिक्स्ड पेग एक्सचेंज रेट को अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट को अपनाया है.


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कैसे किसी करेंसी की डिमांड कम और ज्यादा होती है?


बता दें डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही किया जाता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें रुपये नहीं बल्कि डॉलर देना पड़ता है. और जब हम कोई सामान बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.


आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.


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