Indian Railway: भारतीय रेलवे का देशभर में करीब 68 हजार किलोमीटर लंबा नेटवर्क है. ऐसे में ट्रेनों को सही तरीके से संचालित करने लिए पटरियों पर लगे सिग्‍नल और संकेतों का अहम योगदान होता है. लोको पायलट को इन्ही सिग्नलों के माध्यम से पता चलता है कि कब गाड़ी को बढ़ाना है और कब रोकना है. बचपन में सिखाया गया था कि लाल रंग की ट्रैफिक लाइट का मतलब होता है रुकना और हरी लाइट का मतलब होता है आगे बढ़ना. वहीं, येलो लाइट तैयार रहने का संकेत देती है. लेकिन, ट्रेन के मामले में ऐसा नहीं है कि हरा सिग्‍नल होने पर ही गाड़ी आगे बढ़ती है. कई बार येलो सिग्‍नल देकर भी गाड़ी को आगे बढ़ाया जाता है. 


क्या होता है येलो सिग्नल का मतलब


दरअसल, लोको पायलट के लिए येलो सिग्‍नल का मतलब होता है कि स्‍टेशन पर खड़ी गाड़ी को स्‍टार्ट करके आगे मेन लाइन की ओर ले जाएं. प्‍लेटफॉर्म पर पीछे से आ रही दूसरी गाड़ी को जगह देने के लिए पहली गाड़ी को येलो सिग्नल दिखाकर मेन लाइन पर जाने का संकेत दिया जाता है. 


सिग्नल मिलने पर आगे बढ़ती है ट्रेन


ट्रेन जब स्टेशन की लूप लाइन पर खड़ी होती है, तब यह सिग्‍नल दिया जाता है. लूप लाइन पर लगा सिग्‍नल स्‍टाटर सिग्‍नल कहलाता है. कई बार इसके लिए डबल येलो सिग्‍नल भी दिखा दिया जाता है. जिसे देखने के बाद लोको पायलट गाड़ी को धीरे-धीरे खिसकाकर मेन लाइन की ओर लेकर जाता है.


नहीं होता ग्रीन सिग्‍नल


लूप लाइन पर लगे स्‍टाटर सिग्‍नल में ग्रीन लाइट नहीं होती है, इसमें सिर्फ रेड और येलो लाइट होती है. येलो सिग्‍नल मिलने पर लोको पायलट ट्रेन को आगे बढ़ाता है, लेकिन लूप लाइन पर ट्रेन की स्पीड लिमिट 30 किमी/घंटा से ज्‍यादा नहीं होती है. मेन लाइन पर भी एक स्‍टार्टर सिग्‍नल होता है, जिसे एडवांस सिग्‍नल कहा जाता है. इसके ग्रीन होने पर ही लोको पायलट ट्रेन को मेन लाइन पर पूरी स्‍पीड से चला सकता है. एडवांस स्‍टार्टर सिग्‍लन में तीनों रंग की लाइटें होती हैं.
 
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