How Hing is Made: भारतीय किचन में हींग एक ऐसा मसाला है जिसके बिना खाने का स्वाद अधूरा अधूरा सा लगता है. दाल हो, सब्जी हो या फिर सांभर हो. हींग का तड़का लग जाए तो स्वाद दोगुना हो जाता है.इसकी खुशबू पूरे घर में फैल जाती है. स्वाद के साथ-साथ यह पाचन के लिए भी बहुत ही अच्छी होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस हींग से आपके खाने का जायका दोगुना हो जाता है वह आखिर आती कहां से है अब आप सोच रहे होंगे कि सभी मसालों के तरह इसकी भी भारत में खेती होती होगी तो आपको बता दें कि यह भारत में ना के बराबर पाई जाती है.इसे विदेशों से मंगाया जाता है
कैसे बनती है हींग
सब्जी और दाल में डालने वाला हींग एक पौधे के जरिए निकलता है, जी हां हींग का पौधा होता है, इसका पौधा सौंफ वाले पौधे की श्रेणी में आता है. यह 1 मीटर तक लंबा होता है इसमें पीले फूल लगे होते हैं जो सरसों के फूल के जैसे नजर आते हैं, लेकिन हींग इस फूल से नहीं निकलता बल्कि इस पौधे की जड़ से हींग बनता है, इसीलिए इसे कई लोग गाजर मूली के पौधे की श्रेणी में भी रखते हैं, क्योंकि यह जड़ से तैयार होता है. पौधे से चिपचिपा पदार्थ निकलता है जो बाद में प्रोसेस किया जाता है यह चिपचिपा पदार्थ सूख कर पत्थर की तरह हो जाता है जिसे खड़ी हींग कहा जाता है. इसे प्रोसेस किया जाता है जिससे हींग बनती है.इसे फेरूला प्लांट की स्टीम और जड़ से निकलने वाले चिपचिपा पदार्थ को इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद इस पदार्थ को जमाया जाता है, ताकि पत्थर की तरह सख्त हो जाए.इसके बाद इसे ट्रेडिशनल तरीके से कूटा जाता है ताकि ये आगे भेजा जा सके इसके बाद रॉ मैटेरियल फैक्ट्री में भेजा जाता है जिससे हींग बनती है.हींग दो तरह का होता है, काबुली सफेद और हींग लाल. सफेद हींग पानी में घुल जाता है जबकि लाल या काला हींग तेल में घुलता है.
हींग की पैदावार कहां होती है
हींग भारत में काफी महंगा होता है क्योंकि इसकी पैदावार भारत में नहीं होती है इसे विदेशों से निर्यात करना पड़ता है. इसके अलावा इसे बनाने का प्रोसेस भी काफी लंबा है. इसे 4 साल तक पौधे को लगाने के बाद इसकी जड़ से हींग प्राप्त होता है. इसी वजह से यह काफी महंगा होता है. आपको बता दे कि भारत में इस्तेमाल होने वाला हींग ईरान,अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे देशों से आता है कुछ तो इसे कजाखस्तान से भी मंगवाते हैं, हालांकि एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में भी हींग की खेती होने लगी है और ये खेती हिमाचल के कुछ पहाड़ी इलाकों में की जा रही है.
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