भेड़िया इन दिनों काफी चर्चा में हैं. उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भेड़ियों का डर फैला हुआ है. इस जिले के करीब 35 गांवों में भेड़ियों ने खौफ फैलाकर रखा है. जुलाई से लेकर अब तक भेड़िए 6 से अधिक लोगों को मार चुके हैं जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, जबकि 25 से ज्यादा लोग घायल हैं. हमलो के बीच ये भी सवाल उठने लगा है कि अचानक भेड़ियों का हमला क्यों बढ़ गया है?
लोककथाएं हों या फ़िल्में, भेड़िए को अक्सर एक क्रूर पशु या एक इंसानों के दुश्मन के रूप में पेश किया जाता रहा है, लेकिन सचाई इससे बिल्कुल अलग है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर अमेरिका में 150 साल पहले तक भारी तादाद में भेड़िए पाए जाते थे. यहां कुछ लोग बसने के इरादे से वहां ठहरे और फिर उन्हें ऐसा लगा कि भेड़िया समेत जंगल के अन्य जानवर उनके लिए खतरा हैं. फिर भेडि़यों के खिलाफ एक कैंपेन चलाया गया शिकार के दौरान ग्रे वुल्फ़ को निशाना बनाया गया.
क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?
रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ कि भेड़ियों ने इंसानों पर हमला किया हो. भेड़ियों का अध्ययन करने वाले जीव विज्ञानियों ने माना कि जंगल में रिसर्च के दौरान वे भेड़ियों की मांद तक आसानी से पहुंचने में सफल हुए. इंसानों के इस हमले के बाद भेड़िए उस इलाक़े से चले गए.
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के मोंटाना राज्य में साल 2009-10 के दौरान सरकार ने कुछ आंकड़े जुटाए थे. इससे भेड़िया समेत दूसरे जंगली जानवरों के कारण सिर्फ़ 0.23 फ़ीसद मवेशियों ने जान गंवाई थी. 5 लाख से ज़्यादा पशु पाचन संबंधित कारणों से, 4 लाख 89 हज़ार पशु मौसम में बदलाव के कारण, 4 लाख 94 हज़ार पशु प्रजनन के दौरान मारे गए थे.
ऐसे में यह निकलकर सामने आया था कि भेड़ियों के अंधाधुंध शिकार से उस इलाके़ का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुआ. इससे जानवरों की दूसरी प्रजातियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. रिपोर्ट कहती है कि भेड़ियों की संख्या खत्म होने के साथ एल्क (एक तरह का बारहसिंहा) जैसे जानवरों की संख्या में इजाफा हुआ जबकि भेड़ियों के रहते हुए एल्क उनका शिकार हो सकते थे.
एल्क की आबादी बढ़ने के साथ उनकी खाने की ज़रूरत भी बढ़ी. इसको ध्यान में रखते हुए एल्क ने एक ख़ास तरह की लकड़ी खाना शुरू की जिस लकड़ी का इस्तेमाल बीवर (एक प्रकार का ऊदबिलाव) अपनी रक्षा के लिए डैमनुमा आकृति बनाने के लिए करते थे. ये लकड़ी उपलब्ध नहीं होने के कारण बीवर की आबादी को नुक़सान हुआ. आलम ये है कि येलोस्टोन में साल 1926 में भेड़ियों के आखिरी समूह के शिकार के बाद आज तक पारिस्थितिकी तंत्र संघर्ष कर रहा है.
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