कोलकाता रेप और मर्डर केस में एक महीने का समय पूरा हो चुका है. कोलकाता पुलिस ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में महिला डॉक्टर के साथ रेप-मर्डर की घटना के अगले ही दिन आरोपी संजय रॉय को गिरफ्तार कर लिया. रेप-मर्डर केस सीबीआई को सौंपे जाने के बाद जांच एजेंसी ने आरोपी संजय से पूछताछ भी की, जिसमें उसने खुद को निर्दोष बताया. केस की उलझती गुत्थी को सुलझाने के लिए हाल ही में सीबीआई ने आरोपी संजय ता पॉलीग्राफी टेस्ट करवाया है. इस बीच चलिए जानते हैं कि आखिर ये पॉलीग्राफी टेस्ट होता क्या और कैसे है. इस तरह के टेस्ट में आरोपी तोते की तरह क्यों बोलने लगता है?


क्या होता है पॉलीग्राफी टेस्ट?


सबसे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर ये पॉलिग्राफी टेस्ट होता क्या है? तो बता दें कि लाई डिटेक्टर मशीन को ही पॉलीग्राफ मशीन कहा जाता है, इससे यह पता लगाया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ. दिखने में ये ECG मशीन की तरह ही दिखती है.


दरअसल पॉलीग्राफ टेस्ट इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई झूठ बोल रहा होता है, तो दिल की धड़कन, सांस लेने में बदलाव, पसीना आने लगता है. वहीं पूछताछ के दौरान कार्डियो-कफ या सेंसेटिव इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण व्यक्ति से जुड़े होते हैं और बीपी, नाड़ी आदि को मापा जाता है. इससे व्यक्ति के झूठ और सच का पता लगाया जाता है.


कोर्ट में मान्य नहीं होता पॉलीग्राफी टेस्ट


ऐसे कई कारण रहे हैं जिनकी वजह से पॉलीग्राफ टेस्ट और नार्को टेस्ट वैज्ञानिक रूप से 100% सफल साबित नहीं हुए हैं. हालांकि जांच एजेंसियां इन्हें प्राथमिकता इसलिए भी देती हैं कि शायद उन्हें सबूत जुटाने में मदद मिल जाए. कोई भी कोर्ट पॉलीग्राफ टेस्ट की रिपोर्ट को नहीं मानता है, हालांकि कोर्ट पॉलीग्राफ टेस्ट में पूछताछ के दौरान आरोपी द्वारा किसी जगह और सबूत को मान्य मानता है.                                                                                                                                                             


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