किसी जगह समुद्र कितना गहरा है, इसका पता कैसे चलता है? क्या केबल डाला जाता है, या कुछ और तरीका है?
पुराने समय में किसी एक स्थान पर समुद्र की गहराई मापने के लिए केबल का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, यह सटीक तरीका नहीं था. अब इस काम के लिए फैदोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है.
Depth Of Ocean: पृथ्वी का ज्यादातर हिस्सा महासागरों और समुद्रों से घिरा हुआ है. पृथ्वी के करीब 71 प्रतिशत भाग पर सिर्फ पानी है. समुद्र के रास्ते बहुत बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है. समुद्र में बड़े-बड़े जहाज चलते हैं. ऐसे में समुद्र की गहराई का पता होना भी बेहद जरूरी है. वैसे तो बीच में समुद्र बहुत गहरे होते हैं. लेकिन, अलग-अलग स्थानों पर समुद्र की गहराई भी अलग-अलग होती है. ये कहीं बेहद गहरा है तो कहीं इतना उथला कि लोग वहां नहाते हैं. कम गहराई का तो आसानी से पता लगाया जा सकता है, लेकिन ज्यादा गहराई पर उसे कैसे नापा जाता है? आइए जानते हैं.
केबल से मापी जाती थी गहराई
पुराने समय में समुद्र में किसी एक स्थान पर गहराई मापने के लिए केबल का इस्तेमाल किया जाता था. जलयान रुकता था तथा एक रस्सी या केबल के साथ भार बांध कर उसे समुद्र तल तक लटकाया जाता था. फिर बाद में उसे बाहर निकाल कर पता लगा लिया जाता था कि समुद्र की गहराई कितनी है. यह एक धीमा और उबाऊ काम था. इसके साथ ही यह सटीक भी नहीं था.
फैदोमीटर से मापी जाती है गहराई
आज इंसान के पास ऐसे उपकरण हैं जो उसे समुद्र में गहराई में जानने और इसके तल के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने में सहायता करते हैं. वह उपकरण जिसका इस्तेमाल समुद्र की गहराई मापने के लिए किया जाता है, उसे फैदोमीटर (Fathometer) कहते हैं. इसे जहाजों पर लगाया जाता है. आइए समझते हैं इससे गहराई का पता कैसे चलता है.
कैसे करता है काम
Discoveryworld वेबसाइट के मुताबिक, यह 20,000 मैगाहर्ट्ज से भी अधिक आवृत्ति की ध्वनि तरंगें उत्पन्न करता है. इन्हें अल्ट्रासोनिक वेव्ज कहा जाता है. इन तरंगों को इंसान अपने कानों से नहीं सुन सकता है. इन तरंगों को समुद्र के तल की ओर प्रक्षेपित किया जाता है. जब ये तरंगे समुद्र से टकराकर परावर्तित होकर वापस लौटती हैं, तो इन्हे एक रिसीवर की सहायता से पकड़ा जाता है. तरंगों को सतह से समुद्र तल तक जाने और वहां से वापस लौटने में लगे कुल समय को मापा जाता है .
प्रशांत महासागर है सबसे गहरा
फिर इसके आधे समय को समुद्र के पानी में ध्वनि के वेग से गुणा करने पर उस स्थान पर समुद्र की गहराई का पता चल जाता है. इस तरह से किसी भी स्थान पर समुद्र की गहराई को मापी जा सकती है. इस तकनीक को 'ईको साऊंडिंग' या 'ईको रैंगिंग' के नाम से भी जाना जाता है. इस तकनीक से ही पता चला है कि प्रशांत महासागर सबसे गहरा महासागर है. प्रशांत महासागर की औसत गहराई 4,282 मीटर है.
यह भी पढ़ें - सूखे बादाम का छिलका तो नही उतरता... फिर भीगने पर ऐसा क्या होता है जो यह बड़ी आसानी से उतर जाता है?