दो देशों के बीच समुद्री सीमा कैसे तय होती है, जानिए क्या हैं इसके मानक
यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी के मुताबिक किसी भी देश के लिए समुद्री सीमा तीन स्तर पर बनाई जाती है. इसमें पहली सीमा 22 किलोमीटर के बीच होती है.
अब तक आपने दो देशों के बीच की जमीनी सीमा के बारे में पढ़ा या सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दो देशों के बीच समुद्री सीमा कैसे तय होती है. इसके नियम कानून क्या हैं और किसी देश की समुद्री सीमा में कहां तक घुसपैठ करने वालों की गिरफ्तारी होती है और कहां तक घुसने पर गोली मार दी जाती है. चलिए आज इस आर्टिकल में आपको समुद्री सीमा से जुड़ी सभी जानकारी देते हैं.
समुद्र में होती हैं तीन तरह की सीमाएं
यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी के मुताबिक किसी भी देश के लिए समुद्री सीमा तीन स्तर पर बनाई जाती है. इसमें एक 22 किलोमीटर के बीच होती है. दूसरी लगभग पौने 4 सौ किलोमीटर की होती है और तीसरी इससे दूर के लिए होती है. चलिए अब आपको हर सीमा के बारे में विस्तार से बताते हैं.
पहली सीमा को जानिए
इसमें किसी भी देश को अधिकार होता है कि वह अपनी जमीन से समुद्र में 12 मील यानी लगभग 22 किलोमीटर के भीतर घुसपैठ करने वाले को पहले वार्निंग दे और अगर वह सरेंडर ना करे तो गोली मार दे. हालांकि, अगर घुसपैठिया सरेंडर कर देता है तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है. यह नियम यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी के द्वारा बनाया गया है.
दूसरा नियम समझिए
दूसरा नियम कहता है कि किसी भी देश का अपनी जमीन से समुद्र में लगभग 400 किलोमीटर के हिस्से पर अधिकार होता है. इसे इकोनॉमिक जोन कहा जाता है. इसका इस्तेमाल ज्यादातर मछली पकड़ने और व्यापार के लिए होता है. अगर कोई जहाज इस समुद्री सीमा का उल्लंघन करता है तो उसे चेतावनी दे कर गिरफ्तार किया जा सकता है. हालांकि, ऐसा तभी होगा जब इस 400 किलोमीटर में किसी और देश का समुद्री हिस्सा ना आए.
तीसरी समुद्री सीमा
अगर कोई देश समुद्र के किनारे बसा है और उसकी समुद्री सीमा के 220 मील की दूरी के बाद भी कोई दूसरा देश या उसकी सीमा नहीं है तो वह देश बाकी के खाली हिस्से पर भी अपना दावा कर सकता है. हालांकि, इस पर कई बार विवाद भी हो जाता है. चीन का इस तरह के हिस्से को लेकर कई देशों से विवाद है.