Relations: अपनी जिंदगी में हम बहुत सारे लोगों से मिलते हैं. नई लोग हमारी जिंदगी में आते हैं तो नए रिश्ते बनते हैं. नब्बे के दशक में ब्रिटिश साइकोलॉजिस्ट रॉबिन डन्बर ने इसी को लेकर अपनी एक थ्योरी पेश की. यह थियरी दिमाग के साइज और औसत सोशल ग्रुप साइज से संबंधित थी. थ्योरी के अनुसार, ज्यादा विकसित दिमाग वालों के रिश्ते भी ज्यादा बनते हैं.
इतने लोग होते हैं खास
डन्बर ने बताया कि इंसान अपनी जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा 150 लोगों से ही जुड़ पाता है. इसे डन्बर नंबर कहा जाता है. इसके मुताबिक, हमारे सर्कल में सिर्फ 1.5 से 5 खास लोगों के ही अच्छे-बुरे या होने-न होने से हमें बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है.
50 लोग लगते हैं दोस्त की तरह
इसके बाद के सर्किल में ऐसे 15 लोग आते हैं, जिन्हें हम गुड फ्रेंड मानते हैं. ये हमारे कोई रिश्तेदार या पड़ोसी भी हो सकते हैं. इसके बाद आते हैं वो 50 लोग, जो हमे दोस्त की तरह लगते हैं. लेकिन, इसके बाद के सभी लोग मीनिंगफुल कॉन्टेक्ट (काम से काम रखने वाले) होते हैं.
30 की उम्र तक बनते हैं खास रिश्ते
डन्बर की किताब 'फ्रेंड्स-अंडरस्टैंडिंग द पावर ऑफ अवर मोस्ट इंपॉर्टेंट रिलेशनशिप्स' में दावा किया गया है कि अपना सबसे करीबी रिश्ता हम 30 वर्ष की उम्र तक बना चुके होते हैं. जिसमें 1.5 से 5 लोग होते हैं. इसमें जीवनसाथी, मां-बाप, बच्चे या कोई दोस्त भी शामिल हो सकता है. उम्र के साथ दायरा छोटा होता जाता है और 70 तक यही 1.5 लोग रह जाते हैं.
इस रिश्ते के बाद को देते हैं दोस्त
जीवनसाथी या प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते को लेकर डन्बर का कहना था कि इस रिश्ते में आने के बाद हम दो दोस्तियां खो देते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम अपना सारा ध्यान और ताकत इस रिश्ते को बनाए रखने में ही झोंक देते हैं. ऐसे में सर्कल से अच्छे दोस्त रहने वाले दो लोग गायब हो जाते हैं.
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