दिल्ली पर एक समय महान राजा पृथ्वीराज चौहान का राज हुआ करता था. फिर साल 1191 ईस्वी और 1192 ईस्वी में तराइन का युद्ध हुआ. तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज चौरान ने अफगानिस्तानी शासक मोहम्मद गौरी को पराजित कर दिया था. जबकि तराइन के दूसरे युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके, अपने साथ कैद कर लिया और अफगानिस्तान ले गया. इस तरह दिल्ली की गद्दी खाली हो चुकी थी, जिसे मोहम्मद गौरी ने अपने एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया था.


ये पहली बार था जब दिल्ली की गद्दी पर किसी विदेशी का राज हुआ था. ऐसे में चलिए आज इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर देश की राजधानी दिल्ली पर कितने विदेशी शासकों ने राज किया था.


दिल्ली की गद्दी पर कितने विदेशी शासकों का रहा राज?


मोहम्मद गौरी की कोई संतान नहीं थी, इस स्थिति में मोहम्मद गौरी द्वारा भारत में जीते गए प्रदेशों पर कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन स्थापित हो जाता है और इसी के साथ 1206 ईस्वी में भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हो जाती है.


दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर कुल 5 राजवंशों ने शासन किया था. ये पांच राजवंश गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश थे.


गुलाम वंश (1206 – 1390 ईस्वी)


दिल्ली सल्तनत में पहले राजवंश गुलाम वंश की स्थापना हुई थी. जो 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी. वो इल्बारी जाति का तुर्क शासक था, जिसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था. कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की याद में दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण कार्य आरंभ किया था. उसने दिल्ली में एक मंदिर को तोड़कर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी कराया था.


खिलजी वंश (1290 – 1320 ईस्वी)


खिलजी वंश की स्थापना गुलाम वंश के अंतिम शासक कैयूमर्स की हत्या करके जलालुद्दीन खिलजी ने की थी. अलाउद्दीन खिलजी इस वंश का सबसे प्रमुख शासक था. अलाउद्दीन खिलजी के समय अनेक मंगोल आक्रमण हुए थे, जिनका उसने सफलतापूर्वक सामना किया था. अलाउद्दीन भी अफगानिस्तान से था.


तुगलक वंश (1320 – 1414 ईस्वी)


तुगलक वंश की स्थापना गयाउद्दीन तुगलक ने की थी. उसने किसानों के प्रति उदारता दिखाई और अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बढ़ाई गई भू राजस्व की दरों को कम कर दिया. सल्तनत काल में सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाने वाला ये प्रथम सुल्तान था. सूफी संत निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक को ही कहा था कि दिल्ली अभी दूर है.


सैयद वंश (1414 – 1451 ईस्वी)


सैयद वंश की स्थापना खिज्र खां ने की थी. उसने रैयत--आला की उपाधि धारण की थी.


लोदी वंश (1451 – 1526 ईस्वी)


इस वंश की स्थापना बहलोल लोदी द्वारा की गई थी. बहलोल लोदी एक अफगान था और लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का पहला अफगान बंद था. इसके बाद सिकंदर लोदी शासक बना. सिकंदर लोदी ने अपनी गुप्तचर व्यवस्था को सुदृढ़ किया और वो गुलरूखी नाम से फारसी भाषा में कविताएं लिखा करता था. सिकंदर लोदी ने ही भूमि की पैमाइश के लिएगजे सिकंदरीनाम के माप की शुरुआत की थी.


पानीपत के पहले युद्ध में बाबर से पराजित होने के बाद इब्राहिम लोदी मारा गया और किसी के साथ दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया. इसके बाद 1526 ईस्वी में मुगल वंश की स्थापना हो गई जो लगभग 200 सालों तक चली.


सातवीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक 11 राजवंशों ने दिल्ली पर किया राज


1540 में सूर्य वंश के राजाओं का उदय हुआ और शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर बैठा. इसके बाद 1556 में अकबर ने दिल्ली पर हमला किया और पानीपत के दूसरे युद्ध में उसकी जीत हासिल की. इसके बाद लगभग 200 सालों तक दिल्ली पर मुगलों ने राज किया.


बाबर के बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब ने दिल्ली पर राज किया. फिर 1750 के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया. इसके बाद 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर द्वितीय को बर्मा भेज दिया. फिर दिल्ली में ब्रिटिश क्राउन रूल की शुरुआत हुई. साल 1911 में कलकत्ता से शिफ्ट कर दिल्ली को राजधानी बनाया गया और तभी से दिल्ली देश की राजधानी है.


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