प्रेम क्या है? अगर हर किसी से इस सवाल का जवाब पूछा जाए तो हर कोई जवाब देगा लेकिन जरूरी नहीं कि सबका जवाब एक जैसा हो. प्यार के मायने हर किसी के लिए अलग-अलग हो सकते हैं. हकीकत में देखा जाए तो प्यार को परिभाषित नहीं किया जा सकता. ये प्रेम किसी से भी हो सकता है. ये जरूरी नहीं कि प्यार सिर्फ दो लोगों के बीच ही हो. किसी को अपने कुत्ते से प्यार है तो किसी को उसकी आदतों से है.


जैसा कि हमने कहा कि प्यार कई प्रकार का हो सकता है और इसकी परिभाषा ढूंढना आसान नहीं है. हालांकि प्यार उसे कहा जा सकता है जो आपकी आँखों को सुकून देता है, जिसके लिए आप निस्वार्थ भाव से कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. यह बात बहुत स्पष्ट रखनी होगी कि यदि प्रेम में स्वार्थ आ गया तो वह प्रेम नहीं हो सकता. 


एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया का ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसे कभी प्रेम नहीं हुआ है. तो चलिए आज हम प्रेम के बारे में ही जानते हैं. अगर हम आपसे कहे किे प्रेम चार तीन प्रकार के होते हैं.



  1. प्रेम जो आकर्षण से पैदा होता है.

  2. प्रेम सुख सुविधा के लोभ से पैदा होता है

  3. दिव्य प्रेम


प्रेम जो आकर्षण से पैदा होता है


आकर्षण से उत्पन्न प्रेम अस्थायी होता है क्योंकि यह अज्ञानता या सम्मोहन के कारण होता है. इसमें आपका जल्द ही आकर्षण से मोहभंग हो जाता है और आप बोर हो जाते हैं. यह प्यार धीरे-धीरे कम होने लगता है और भय, अनिश्चितता, असुरक्षा और उदासी लाता है. यानी प्रेम की कोई लाइफ नहीं होती है.


प्रेम सुख सुविधा के लोभ से पैदा होता है


जो प्रेम सुख सुविधा के साथ आता है तो वो प्यार घनिष्ठता लाता है लेकिन इसमें कोई जुनून, उत्साह या खुशी नहीं होती है. उदाहरण के लिए, आप किसी नए दोस्त की तुलना में किसी पुराने दोस्त के साथ अधिक सहज महसूस करते हैं क्योंकि वह आपसे परिचित होते हैं.


दिव्य प्रेम


ईश्वरीय प्रेम प्रेम का सर्वोच्च रूप है. यह सदाबहार है और सदैव नया रहता है. आप इसके जितना करीब पहुंचेंगे, यह उतना ही अधिक आकर्षक और गहरा होता जाएगा. यह कभी नहीं थकता और सभी को अच्छी आत्माओं में रखता है.


ये भी पढ़ें- मच्छर भगाने वाला लिक्विड आपकी हेल्थ के लिए कितना सही? घर में लगाने से पहले पढ़ लें...