कहते हैं पूरी पृथ्वी को अगर किसी ने जोड़े रखा है तो वह समंदर है. जब सड़क मार्ग और हवाई मार्गों का विकास नहीं हुआ था तब समुद्री मार्ग के जरिए ही लोग एक देश से दूसरे देश जाया करते थे. कितने देशों की अर्थव्यवस्था ही समंदर पर टिकी हुई है. समंदर ने हमें बहुत कुछ दिया है, लेकिन हम समंदर को कचरे के सिवाय कुछ नहीं दे रहे हैं. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल लगभग 300 मिलियन टन प्लास्टिक का निर्माण होता है, जबकि इसमें से लगभग 14 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे के रूप में हर साल समंदर में डंप किया जाता है. यानी फेंक दिया जाता है.


वहीं कोविड के दौरान नानजिंग यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एटमॉस्फेरिक साइंसेज और यूसी सैन डियागो के स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी के शोधार्थियों ने एक रिसर्च किया, जिसमें उन्होंने पाया कि दुनिया भर के महासागरों में इस वक्त हर साल लगभग 80 लाख से एक करोड़ तक प्लास्टिक वेस्ट समुद्र में फेका जाता है.


मछलियों से ज्यादा हो जाएगा प्लास्टिक


जिस तेजी के साथ इंसानों द्वारा समुद्र में प्लास्टिक और कचरे को डंप किया जा रहा है उससे यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि आने वाले वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक की संख्या हो जाएगी. दरअसल, होता यह है कि जितना भी कचरा समंदर में फेंका जाता है उसका 70 फ़ीसदी हिस्सा उसमें डूब जाता है, जो हमेशा उसके अंदर पड़ा रहता है. वहीं 15 फीसद हिस्सा समंदर में तैरता रहता है, जबकि 15 फ़ीसदी हिस्सा समुद्री लहरों के माध्यम से तटों पर आ जाता है.


कहां से आ रहा है इतना कचरा


वर्ल्डवॉच इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका और यूरोप में प्रति व्यक्ति साल में करीब 100 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है... इसमें ज्यादातर प्लास्टिक का इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है जो एक बार इस्तेमाल होने के बाद फेंक दिया जाता है. वहीं दूसरी ओर एशिया की बात करें तो यहां प्रति व्यक्ति सालाना प्लास्टिक का इस्तेमाल 20 किलोग्राम है. ये जितना प्लास्टिक का कचरा फेंका जाता है वह धीरे-धीरे समंदरों में डंप कर दिया जाता है, जिसकी वजह से आज समुद्र कचरे का ढेर बन गया है.


कचरा रीसाइकिल नहीं हो पा रहा है


इस समय पूरी दुनिया में अगर देखा जाए कि कितना कचरा रीसायकल हो पा रहा है तो इसकी मात्रा बेहद कम है. एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का एक तिहाई हिस्सा ही सिर्फ रीसाइकिल्ड हो पाता है. जबकि बाकी का सारा प्लास्टिक कचरा या तो जमीन में कहीं डंप कर दिया जाता है या फिर उसे समंदर में फेंक दिया जाता है. प्लास्टिक के साथ समस्या यह है कि वह जल्दी से सड़क के डीकंपोज नहीं होता, बल्कि कई सौ साल तक जमीन में या समंदर में वैसे का वैसा ही पड़ा रहता है और धीरे-धीरे माइक्रो प्लास्टिक के जरिए अपने आसपास के हिस्से को प्रदूषित करता रहता है.


ये भी पढ़ें: क्या है भारत के इस खैट पर्वत का रहस्य, जिसे कहा जाता है परियों का देश... जानिए वहां ऐसा क्या है