जब भी आप फ्लाइट में सफर करते हैं तो इस यात्रा के दौरान प्लेन एक समय काफी ऊंचाई पर उड़ता है. जमीन से इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर भी काफी कम हो जाता है और सांस लेने में मुश्किल हो जाती है. लेकिन, जब आप फ्लाइट में बैठे रहते हैं तो आपको ये दिक्कत नहीं होती है. इसका कारण है कि फ्लाइट में आपको पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहती है. ऐसे में सवाल है कि आखिर हवाई जहाज में ऑक्सीजन कैसे मिल पाती है और यह ऑक्सीजन किस तरह यात्रियों तक पहुंचती है. तो जानते हैं कि क्या यात्रा के दौरान वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन से ही काम चल जाता है और या फिर मशीनों के जरिए ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है.
कैसे मिलती है ऑक्सीजन?
अगर ऑक्सीजन की बात करें तो फ्लाइट केबिन में बैठे लोगों के लिए आसमान से ही ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है. ऐसा नहीं है कि फ्लाइट के यात्रियों के लिए अलग से सिलेंडर आसमान में ले जाए जाते हैं. ऐसे में इमरजेंसी के लिए अलग प्रबंध भी हो सकता है. हालांकि, आम स्थितियों के लिए आसमान की ऑक्सीजन से ही काम चलाया जाता है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि इतनी ऊंचाई पर लोग जमीन की तरह सामान्य तरीके से ऑक्सीजन हासिल कर लेते हैं. उस ऊंचाई पर सामान्य तरीके से पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, ऐसे में केबिन अलग से ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है, लेकिन ये ऑक्सीजन बाहर की हवा से अंदर पहुंचाई जाती है. ऐसे में एक तय प्रोसेस के जरिए बाहर की ऑक्सीजन को अंदर लाया जाता है और यात्रियों के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की व्यवस्था की जाती है ताकि यात्री बिना किसी दिक्कत के ऑक्सीजन प्राप्त कर सकते हैं.
क्या है ऑक्सीजन मिलने का प्रोसेस?
बता दें कि एक प्रोसेस से गुजरने के बाद ऑक्सीजन मिलती है. ज्यादा ऊंचाई पर हवा सांस लेने योग्य नहीं होती है, क्योंकि वहां बहुत कम ऑक्सीजन होती है. इसके लिए बाहर की ऑक्सीजन को अंदर लाने के लिए एक प्रोसेस को पूरा किया जाता है. सबसे पहले बाहर की ऑक्सीजन इंजन में प्रवेश करती है और फिर बाहरी हवा को प्रोसेस किया जाता है. फिर गर्म हवा को अंदर लिया जाता है और इसे सांस लेने योग्य बनाया जाता है. फिर दूसरी हवा को बाहर किया जाता है. मगर, सीधे इसे प्लेन में एंटर करके उपयोग में नहीं लाया जाता है और अगर सिर्फ बाहर की ऑक्सीजन के भरोसे रहा जाए तो काफी मुश्किल हो सकती है और यात्रियों की मेडिकल कंडीशन खराब हो सकती है.
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