खून, पसीना, थूक... इनका सबकुछ होता था जहरीला! पढ़िए कैसे बनती थी विषकन्याएं
विषकन्या बनाए जाने के दौरान ज्यादातर बच्चियां मर भी जाया करतीं थीं तो कुछ विकलांग हो जातीं थीं. सही-सलामत बचने वाली बच्चियों को और घातक बनाया जाता था.
Poisonous Girls: प्राचीन समय में राजा-महाराजा अपने पास विषकन्याएं रखा करते थे, जिनका इस्तेमाल वो अपने सबसे खतरनाक दुश्मन को मारने या उसका कोई भेद निकलवाने के लिए किया करते थे. विषकन्याएं एक तरह का 'ह्यूमन वेपन' हुआ करती थीं, जिनको एक खास प्रक्रिया के तहत तैयार किया जाता था.
खूबसूरत बच्चियों को छांटा जाता था
अक्सर राजा अपनी अवैध संतानों या फिर अनाथ और गरीब बच्चियों को विषकन्या में बदल देते थे. इन्हें राजमहल में ही रखकर इनके खानपान का ख्याल रखा जाता था और फिर कुछ दिनों बाद इनके जहरीले बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती थी. कम उम्र से ही इन्हे निर्धारित मात्रा में अलग-अलग तरह का जहर दिया जाता था. बाद में धीरे-धीरे जहर की मात्रा को बढ़ाया जाता था. इस दौरान ज्यादातर बच्चियां मर भी जाया करतीं थीं तो कुछ विकलांग हो जातीं थीं. सही-सलामत बचने वाली बच्चियों को और घातक बनाया जाता था.
मिलती थी ट्रेनिंग
इन्हे नृत्य, गीत, साहित्य, सजने-संवरने और लुभाने की हर कला में पारंगत बनाया जाता था. उन्हे इस तरह तैयार किया जाता था कि किसी राजा-महाराजा से बातचीत कर, वो उसे लुभा सकें. युवा होते-होते ये इतनी विषैली हो जाया करती थीं कि उनके शरीर का स्पर्श भी जानलेवा होता था. उनका पूरा शरीर यानी उनका खून, थूक और पसीना सब कुछ जहरीला हो जाता था, लिहाजा उनसे किसी भी तरह का शारीरिक संबंध बनाना जानलेवा होता था. इस तरह विष कन्याओं का इस्तेमाल दूसरे राजाओं या सेनापति को मारने या उनसे जरूरी जानकारियां निकलवाने के लिए किया जाता था.
इस तरह बन जाती थी विषैली
लड़कियों को जहरीला बनाने की इस प्रक्रिया को मिथ्रिडायटिज़म (mithridatism) कहते हैं. जिसमें किसी के शरीर में धीरे-धीरे जहर डालकर उसे जहर के लिए इम्यून बना दिया जाता है. गौरतलब है कि मिथ्रिडायटिज़म हर तरह के जहर के साथ नहीं किया जा सकता. इसके लिए केवल बायोलॉजिकली ज्यादा जटिल संरचना के जहर का ही इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि, हमारा इम्यून सिस्टम इसी तरह के जहर पर प्रतिक्रिया देता है. निश्चित मात्रा में बार-बार एक ही तरह का जहर देने पर लिवर की कंडीशनिंग हो जाती है और वो जहर को पचाने के लिए ज्यादा एंजाइम बनाता है. उदाहरण के लिए सेब या कई दूसरे फलों के बीजों में सायनाइड होता है. अक्सर हम इनके बीज खा भी लेते हैं. चूंकि यह बहुत थोड़ी मात्रा में शरीर में जाता है, इसलिए इसका आदी हो चुका हमारा लिवर उसे पचा लेता है.
हिंदू माइथोलॉजी में भी जिक्र
कहा जाता है कि ग्रीक राजा सिकंदर (Alexander The Great) जब दुनिया फतह करने निकला था तो उसके गुरु अरस्तू ने उसे भारत की विषकन्याओं के बारे में बताया था. भारत फतह के दौरान उसने खास ध्यान रखा कि यहां की युवतियों के साथ उसका ज्यादा संबंध न हो और अगर हो भी तो काफी जांच-परख के बाद हो. इस बारे में चाणक्य (340-293 ईपू) के अर्थशास्त्र में भी जिक्र मिलता है.
मॉडर्न जमाने में भी हैं विषकन्या!
हालांकि, पुराने समय में विषकन्याओं के होने की पुष्टि करने वाला कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, लेकिन तब भी दुनियाभर के साहित्य और लोकगाथाओं में इसका उल्लेख इसके होने पर मुहर लगाता है. आज के जमाने में हनी ट्रैप को विषकन्या का ही आधुनिक टर्म माना जाता है.
यह भी पढ़ें - वो कौन-सा तरीका है, जिससे कुछ ही सेकेंड्स में पता चल जाएगा कि आपके नाम से किसी और ने तो सिम नहीं ली है?