आपने नोटिस किया होगा कि आज कल वेंडर रेलवे प्लेटफॉर्म पर धड़ल्ले से महंगा सामान बेचते हैं और इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती. जो चिप्स का पैकेट आपको बाहर दस रुपये का मिलेग वही आपको रेलवे प्लेटफॉर्म पर 15 रुपये का मिलता है. जबकि, क्वांटिटी भी दोनों पैकेटों में सेम होती है. अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है और रेलवे प्लेटफॉर्म पर महंगा बेचन के बाद भी इन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती है?


क्या ट्रिक अपनाते हैं वेंडर?


दरअसल, रेलवे प्लेटफॉर्म पर जब कोई वेंडर एमआरपी से ज्यादा कीमत पर कोई सामान बेचे तब आप उसके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं और फिर उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. लेकिन वो ऐसा करते ही नहीं है. यहीं उनका ट्रिक काम आता है. आपने ध्यान दिया होगा कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर जब आप चिप्स का पैकेट खरीदने जाएंगे तो आपको लेस या किसी भी बड़े ब्रांड का चिप्स नहीं दिखेगा. वो लोकल ब्रांड के चिप्स रखते हैं जिस पर एमआरपी ही बाहर के मुकाबले ज्यादा होती है. ऐसे में जब आप वेंडर से महंगे के लिए लड़ते हैं तो वह आपको पैकेट पर एमआरपी दिखा कर चुप करा देता है.


क्या एमआरपी ज्यादा लिखना गुनाह नहीं है?


अब तक मिली जानकारी के अनुसार चिप्स के पैकेट या बिस्किट के पैकेट को लेकर ऐसा कोई नियम नहीं बनाया गया है जिसके अनुसार ये तय किया जा सके कि कितने ग्राम प्रोडक्ट का कितना एमआरपी हो सकता है. अभी हाल ही में कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी कुछ नमकीन के पैकेट उठाकर दिखाते हुए एक वीडियो बनाया था कि कैसे नमकीन कंपनियों ने दाम तो नहीं बढ़ाए लेकिन एक पैकेट में आने वाली नमकीन की क्वांटिटी को घटा दिया. इसलिए आपको सलाह दी जाती है कि यात्रा करते समय जरूरी सामान घर से ही ले जाएं, वर्ना आपको लो क्वालिटी वाला सामान ज्यादा पैसे देकर लेना पड़ सकता है और आप इसके खिलाफ कुछ कर भी नहीं पाएंगे.


कंपनियां ऐसा क्यों करती हैं?


आपको बता दूं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जिस कंपनी का सामान रेलवे प्लेटफॉर्म पर बिकता है  उस कंपनी का सामान बाजार में नहीं बिकता. ये सामान बाजार में भी बिकता है लेकिन रेलवे प्लेटफॉर्म वाले दाम पर नहीं. दरअसल, ऐसी कंपनियां करती ये हैं कि वो एक ही प्रोडक्ट को दो एमआरपी वाले पैकेटों में निकालती हैं. हालांकि, इसमें दिखावे के लिए थोड़े बदलाव होते हैं लेकिन ये सिर्फ दिखावा ही होता है. एक पैकेट वो बस स्टैंड, रेलवे प्लेटफॉर्म और टूरिस्ट प्लेस के लिए निकालती हैं जिसका एमआरपी ज्यादा होता है और एक पैकेट वो आम बाजार के लिए लॉन्च करती हैं जिसकी कीमत या जिस पर एमआरपी बाजार में मौजूद दूसरे प्रोडक्ट की तर्ज पर होता है. ऐसा करके वो दोनों जगह से अच्छा मुनाफा कमाती हैं और वेंडर को एमआरपी पर एक्स्ट्रा छूट देकर उन्हें भी मोटा पैसा कमवाती हैं. ये एक पूरा नेक्सस है जो बड़ी बड़ी कंपनियों से लेकर छोटी छोटी दुकानों तक फैला हुआ है.


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