Parker Pen: बात है 1880 के दशक की. जॉर्ज सैफर्ड पार्कर अमेरिका के विंकोंसिन प्रोविनेंस के जेम्सविले में एक टेलीग्राफी स्कूल में शिक्षक थे. पढ़ाने के अलावा वो एक पेन कंपनी जॉन हॉलैंड गोल्ड के फाउंटेन पेन बेचते थे. उस समय ये प्रोडक्ट्स ज्यादा लंबे नहीं टिकते थे. इनकी इंक जल्दी खत्म हो जाती थी और ये लीक भी होते थे. इन दिक्कतों को देखते हुए पार्कर ने इसे चुनौती के रूप में लिया और फाउंटेन पेन को सुधारने के लिए, उसकी कमियों पर सुधार में काम करना शुरू किया. अपनी इस मुहिम में उन्होंने अपने छात्रों को भी शामिल किया. लगभग एक महीने में उन छात्रों के पेन्स को दुरस्त कर दिया. बस... यहीं से पार्कर और उनके पेन की कहानी की शुरुआत होती है. 


1888 में शुरू हुई कंपनी 


जॉर्ज पार्कर ने फाउंटेन पेन की ज्यादातर कमियां सुधार ली और अब उनका दिमाग व्यापार करने की सोचने लगा. लेकिन अभी दो कॉमन समस्याएं थीं. पहली थी पैसे की कमी और दूसरी थी फेलियर का डर. पार्कर ने अपना खुद को प्रोत्साहित किया और दिक्कतें दूर करने के लिए नए समाधान ढूंढने में लग गए. परिणामस्वरूप लकी कर्व फीड के रूप में उन्हें एक ऐसा समाधान मिला जो पेन के इस्तेमाल न होने कर इससे अतिरिक्त स्याही निकाल लेता था. आखिरकार 1888 में पार्कर में अपनी पेन कंपनी खोल ली. 


चल पड़ा बिजनेस 


पार्कर को मोटी पूंजी की आवश्यकता थी. तब उनका साथ दिया डब्ल्यूएफ पामर ने. डब्ल्यूएफ पामर की मुलाकात पार्कर से एक इंश्योरेंस के चक्कर में हुई थी. पामर ने जॉर्ज से प्रभावित होकर तब उनको 1000 डॉलर की पूंजी दी और कंपनी में उनकी आधी हिस्सेदारी हो गई. 1898 तक पार्कर और पामर ने एक छोटे से घर से ही कंपनी का संचालन किया. उन्हें बाजार में अच्छा रेस्पॉन्स मिलने लगा. सन 1899 में अपने पेन का जॉइंटलेस मॉडल लांच करने के साथ ही उन्होंने जेम्सविले के साउथ मेन स्ट्रीट पर एक चार मंजिला इमारत को अपना कारोबार का केंद्र बनाया. जल्दी ही दुनियाभर में उनके 100 डिस्ट्रीब्यूटर हो गए. 


बॉलपेन ने बढ़ा दी लोकप्रियता 


1937 में जॉर्ज पार्कर का निधन हो गया. उनके.निधन के बाद कंपनी को कुशल प्रबंधकों ने संभाला और आगे बढ़ाया. 20वीं सदी के मध्य में दुनिया में बॉल पेन की एंट्री हो चुकी थी और बाजार में वह अच्छे कदम जमा चुका था. बॉल पेन को मात देने के लिए पार्कर ने भी अपना शानदार बॉलपेन जाॅटर पेश किया. 1954 के बाद से कई दशकों तक जॉटर का जलवा रहा. 


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