सीवर सफाई करना कई लोगों को उनकी जान के लिए भारी पड़ जाता है. जी हां, हमारे देश में सैकड़ों लोग सीवर सफाई जैसा काम करने में अपनी जान गंवा देते हैं. कई बार सीवर टैंक में उतरते ही जहरीली गैस से लोगों की जान चली जाती है. ऐसे में चलिए जानते हैं कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में सीवर की सफाी कैसे की जाती है और क्या वहीं भी सीवर सफाई में कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं?


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भारत में सीवर सफाई करते वक्त गई इतने लोगों की जान


संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 और 2023 के बीच देश भर में कम से कम 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई से हुई है. आंकड़ों की मानें तो सीवर सफाई का काम करते समय हर साल देश में लगभग 70 लोगों की जान चली जाती है. बता दें भारत में सीवर सफाई का काम मुख्य रूप से दलित समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता है. सदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था के कारण, यह काम दलितों के लिए एक तरह का अभिशाप बन गया है. इन लोगों को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के गंदे नालों में उतरना पड़ता है, जिससे उनकी जान को खतरा रहता है.


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पाकिस्तान में सीवर की सफाई का है क्या हाल?


आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन पाकिस्तान में भी सीवर सफाई का काम मुख्य रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषकर ईसाइयों द्वारा किया जाता है. इन लोगों को कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है और उन्हें सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जाते हैं. दरअसल पाकिस्तान में भी जातिवाद और धार्मिक भेदभाव फैला हुआ है. यहां ईसाइयों को समाज का सबसे निचला तबका माना जाता है और उन्हें गंदे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.


साल 2020 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाकिस्तान में ईसाई धर्म के लोगों के हालात पर रिपोर्ट की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे पाकिस्तान में ईसाइयों के साथ भेदभाव वाला व्यवहार किया जाता है. उनकी स्थिति समाज में सबस बदतर बनाकर रखी गई है. उन्हें सीवर साफ करने के लिए न ही कोई सुरक्षा उपकरण मिलते हैं, न ही दस्ताने मिलते हैं और न ही मास्क दिया जाता है. तीन से चार सीवर की सफाई करने पर एक सफाई कर्मी को 400 रुपये ही मिल पाते हैं. बता दें पाकिस्तान में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों की संख्या के बारे में सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि भारत की तरह ही यहां भी हर साल कई लोग अपनी जान गंवाते हैं. हालांकि पाकिस्तान में सीवर की सफाई को गैरकानूनी घोषित किया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर अब भी इस कानून का पालन नहीं किया जाता.             


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