पूरी पृथ्वी कैसे बन गई थी बर्फ का गोला...70 करोड़ साल बाद विज्ञान को मिला जवाब
साइंस पत्रिका जियोलॉजी में इसे लेकर एक रिसर्च प्रकाशित हुई है. ये रिसर्च हमारी समझ को पृथ्वी के बदलाव को लेकर काफी मजबूत करती है.
पृथ्वी आज जैसी दिखती है सदियों पहले ऐसी नहीं थी. जीवन और हरियाली से भरी ये धरती एक समय पहले बर्फ का एक निर्जीव गोला थी. यहां हर तरफ सिर्फ बर्फ ही बर्फ थी. दरअसल, हम बात कर रहे हैं 70 करोड़ साल पहले की. चलिए जानते हैं कि आखिर पृथ्वी के साथ ऐसा क्यों हुआ था. ऐसी कौन सी वजह थी, जिसने जीवन से भरे इस नीले गोले को बर्फ का बंजर रेगिस्तान बना दिया था.
तलछट में मिला जवाब
डॉ. एड्रियाना डुट्कीविच और प्रोफेसर डीटमार म्युलर दावा करते हैं कि उन्होंने इसका जवाब ढूंढ निकाला है. उनका दावा है कि इसका जवाब उन्हें ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स पहाड़ियों में 60-70 करोड़ पहले जमा हुए तलछट में मिला. दरअसल, वैज्ञानिकों ने जब इस तलछट की जांच प्लेट टेक्टोनिक मॉडलिंग के जरिए की तब जा कर पता चला कि आखिर आज से 70 करोड़ साल पहले कैसे इस धरती का तापमान अचानक से इतना गिर गया कि पूरी पृथ्वी बर्फ का गोला बन गई.
पृथ्वी पर कैसे आया हिमयुग
साइंस पत्रिका जियोलॉजी में इसे लेकर एक रिसर्च प्रकाशित हुई है. ये रिसर्च हमारी समझ को पृथ्वी के बदलाव को लेकर काफी मजबूत करती है. इसके अलावा इस रिसर्च में पता चलता है कि कैसे जलवायु वातावरण में मौजूद कार्बन को लेकर संवेदनशील है. वैज्ञानिकों ने जब इसे लेकर रिसर्च किया तो पाया कि धरती पर हिमयुग के आने की सबसे बड़ी वजह ज्वालामुखियों से ऐतिहासिक रूप से कम कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन से जुड़ी थी.
खासतौर से इसमें ज्वालामुखीय चट्टानों के विशाल भंडार ने भूमिका निभाई. दरअसल ये ज्वालामुखीय चट्टानें कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख लेती हैं. इसी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि आइस एज यानी हिमयुग ठीक उस वक्त आया था जब कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में सबसे कम था. इसके साथ ही ये भी पता चला कि पूरे हिम युग में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन तुलनात्मक रूप से बेहद कम रहा.
अब पृथ्वी गर्म होने वाली है?
जर्मन न्यूज वेबसाइट DW पर छपी एक खबर के अनुसार, जिस तरह से ये पता चला है कि हिमयुग क्यों आया था, उसी तरह के एक रिसर्च से पृथ्वी के भविष्य का भी अनुमान लगाया गया है. इस अनुमान के मुताबिक, आने वाले 25 करोड़ साल में पृथ्वी का तापमान इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि यहां जीवों का रह पाना मुश्किल हो जाएगा.
खासतौर से इंसान इतनी गर्मी को नहीं झेल पाएंगे. ऐसे देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन एक धीमी लेकिन सतत प्रक्रिया है. हालांकि, नासा ने कुछ समय पहले कहा था कि इंसानी कारणों की वजय से जलवायु परिवर्त की प्रक्रिया दस गुना तेजी से हो रही है. आसान भाषा में कहें तो इंसान अपने अस्तित्व को खुद ही तेजी से संकट की ओर ले जा रहा है.
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