भारत से किसी व्यक्ति को पाकिस्तान डिपोर्ट करने का निर्णय अक्सर राजनीतिक, कानूनी और मानवीय आधारों पर लिया जाता है. इस प्रक्रिया में कई चुनौतियां होती हैं, जिनमें से एक सबसे जरुरी है डिपोर्टेशन का खर्च. आखिरकार, इस खर्च को कौन वहन करेगा - भारत या पाकिस्तान? इस सवाल का जवाब कई कारणों पर निर्भर करता है. चलिए जानते हैं कि आखिर ये खर्च उठाता कौन है.


कौन उठाता है डिपोर्टेशन का खर्च?


आमतौर पर डिपोर्टेशन का खर्च उस देश द्वारा वहन किया जाता है जहां से व्यक्ति को डिपोर्ट किया जा रहा है. इसका मतलब है कि अगर भारत से किसी व्यक्ति को पाकिस्तान डिपोर्ट किया जाता है, तो आमतौर पर भारत को ही इस खर्च को वहन करना चाहिए.


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क्या है इस नियम के पीछे के तर्क?


किसी देश में रहने वाले व्यक्ति के लिए उस देश के कानून का पालन करना जरुरी होता है. अगर कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है तो उसे देश छोड़ने के लिए कहा जा सकता है और इस प्रक्रिया का खर्च उस देश को ही उठाना चाहिए.


इसके अलावा डिपोर्टेशन की प्रक्रिया में कई सरकारी एजेंसियां शामिल होती हैं, जैसे कि पासपोर्ट विभाग, विदेश मंत्रालय, और सुरक्षा एजेंसियां. इन सभी एजेंसियों को इस प्रक्रिया में लगने वाले खर्च को वहन करना होता है.


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कुछ मामले ऐसे भी


हालांकि कुछ मामलों में इस नियम से हटकर भी फैसले लिए जा सकते हैं. जैसे भारत और पाकिस्तान के बीच किसी विशेष समझौते के तहत डिपोर्टेशन का खर्च साझा किया जा सकता है या पूरी तरह से पाकिस्तान को दिया जा सकता है. इसके अलावा अगर किसी व्यक्ति की जान को खतरा है तो उसे डिपोर्ट करने से बचाया जा सकता है और इस स्थिति में डिपोर्टेशन का खर्च किसी तीसरे पक्ष द्वारा वहन किया जा सकता है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति को ऐसे देश में डिपोर्ट नहीं किया जा सकता जहां उसे यातना या अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है.


डिपोर्टेशन के दौरान आने वाली चुनौतियां


कई बार डिपोर्ट किए जाने वाले लोगों के पास वैध दस्तावेज नहीं होते हैं, जिससे डिपोर्टेशन प्रक्रिया में देरी होती है. इसके अलावा डिपोर्ट किए जाने वाले लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं रहती हैं, खासकर अगर उन्हें अपने देश में उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही डिपोर्टेशन के फैसलों पर अक्सर राजनीतिक दबाव होता है.


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