इंसान के जीवन के लिए ऑक्सीजन का होना सबसे जरूरी है. बिना ऑक्सीजन गैस के किसी भी इंसान और जानवरों के जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं. इंसान के जीवत रहने के लिए ऑक्सीजन स्तर ठीक होना चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि जब वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस मौजूद है, तो उसे सिलेंडर में क्यों नहीं भर सकते हैं. आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे. 


ऑक्सीजन गैस


इंसान के जीवन के लिए ऑक्सीजन गैस की जरूरत होती है. आपको 3 साल पहले का वो दौर याद होगा, जब कोविड महामारी के कारण ऑक्सीजन सिलेंडर की करोड़ों की संख्या में डिमांड हो रही थी. अब सवाल ये है कि आखिर वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन गैस को सिलेंडर में क्यों नहीं भर पाते हैं. आखिर ऑक्सीजन गैस बनाने के लिए क्या-क्या चाहिए होता है. 


क्या है ऑक्सीजन गैस?


मेडिकल की भाषा में ऑक्सीजन कानूनी रूप से यह एक आवश्यक दवा है, जिसे 2015 में जारी देश की अति आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया था. इतना ही नहीं इसे हेल्थकेयर के तीन लेवल- प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शीयरी के लिए आवश्यक करार दिया गया है. इसके अलावा ये WHO की भी आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल है. बता दें कि प्रोडक्ट लेवल पर मेडिकल ऑक्सीजन का मतलब 98% तक शुद्ध ऑक्सीजन होता है, जिसमें नमी, धूल या दूसरी गैस जैसी अशुद्धि न हों.


वायुमंडल से क्यों नहीं भर पाते हैं ऑक्सीजन ?


बता दें कि हमारे चारों ओर मौजूद हवा में मात्र 21% ऑक्सीजन होती है. लेकिन मेडिकल इमरजेंसी में उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसलिए मेडिकल ऑक्सीजन को खास वैज्ञानिक तरीके से बड़े-बड़े प्लांट में तैयार किया जाता है, वह भी लिक्विड ऑक्सीजन तैयार किया जाता है. 


कैसे बनता है ऑक्सीजन?


बता दें कि जिस तरह पानी को 0 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करने पर वह जमकर बर्फ या ठोस बन जाता है. वैसे ही 100 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर उबलकर भाप यानी गैस में बदल जाता है. ऑक्सीजन -183 डिग्री सेल्सियस पर ही उबलकर गैस में बदल जाता है. यानी पानी का बॉयलिंग पॉइंट 100 डिग्री सेल्सियस है, तो ऑक्सीजन का -183 डिग्री सेल्सियस है. यानी ऑक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ठंडा कर देंगे तो वह लिक्विड में बदल जाएगी.


वायुमंडल में ये गैस मौजूद


हवा में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और बाकी 1% आर्गन, हीलियम, नियोन, क्रिप्टोन, जीनोन जैसी गैस होती है. इन सभी गैसों का बॉयलिंग पॉइंट बेहद कम, लेकिन अलग-अलग होता है. बता दें कि अगर हम हवा को जमा करके उसे ठंडा करते हैं, तो -108 डिग्री पर जीनोन गैस लिक्विड में बदल जाएगी. ऐसे में हम उसे हवा से अलग कर सकते हैं. जैसे -153.2 डिग्री पर क्रिप्टोन, -183 ऑक्सीजन और अन्य गैस बारी-बारी से तरल बनती जाएंगी. उन्हें हम अलग-अलग करके लिक्विड फॉर्म में जमा कर लेते हैं. बता दें कि वायु से गैसों को अलग करने की इस तकनीक को हम क्रायोजेनिक टेक्निक फॉर सेपरेशन ऑफ एयर कहते हैं. इस तकनीक से तैयार लिक्विड ऑक्सीजन 99.5% तक शुद्ध होती है.


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