यहां मर्द संभालते हैं घर का किचन, जानिए क्या है इसके पीछे की वजह
भारत समेत अधिकांश जगहों पर घर का किचन महिलाओं के हाथों में होता है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले हैं, जहां पर महिलाओं की जगह मर्द संभालते हैं किचन.
दुनियाभर में आपने अक्सर सुना होगा कि किचन में महिलाओं का ही दबदबा रहता है. हालांकि होटल समेत अन्य जगहों पर महिलाएं और पुरुष दोनों ही कुक होते हैं. लेकिन घर के किचन में अक्सर देखा जाता है कि महिलाओं का ही हाथ होता है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने वाले हैं, जहां हर घर का किचन मर्द संभालते हैं और बेहतरीन खाना बनाते हैं. आज हम आपको इसके पीछे की वजह बताएंगे.
किचन
भारतीय किचन में तो अक्सर देखा जाता है कि खाने-पीने की जिम्मेदारी महिलाओं के पास होती है. हालांकि पुरुष भी अच्छे कुक होते हैं. लेकिन जब घर में खाना बनाने की बात होती है, तो महिलाओं को ही आगे किया जाता है. कामकाजी महिलाएं भी नौकरी के साथ खाने-पीने की जिम्मेदारी खुद ही संभालती हैं. लेकिन आज हम आपको जिस गांव के बारे में बताएंगे, उसके बारे में जानकर आप हैरान होंगे. क्योंकि वहां का किचन मर्द संभालते हैं.
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कहां पर है ये परंपरा
बता दें कि पुड्डुचेरी का एक गांव ऐसा है, जहां पर महिलाओं की जगह पुरुष किचन का काम संभालते हैं. इतना ही नहीं इस गांव के बारे में आपको जानकर हैरानी होगी मगर यहां पर 500 सालों से किचन की जिम्मेदारी पुरुषों की है. वहीं गांव के हर घर में एक पुरुष बावर्ची है और पिछले 5 सदियों से यही परंपरा चलती आ रही है.
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गांव में है पुरुष कुक
जानकारी के मुताबिक पुड्डुचेरी से 30 किलोमीटर दूर कलायुर गांव है. यहां हर घर में आपको एक बेहतरीन पुरुष कुक मिलेगा. इस गांव में महिलाओं की बजाय आपको बेस्ट शेफ पुरुष मिलेंगे. इस गांव को ‘विलेज ऑफ कुक्स’ के नाम से भी जाना जाता है. इस गांव में करीब 80 घर हैं और हर घर में पुरुष बावर्ची का होना परंपरा का हिस्सा है. ये परंपरा भी कोई आज की नहीं है, बल्कि 500 सालों से चली आ रही है. एक अनुमान के मुताबिक गांव में 200 पुरुष कुक हैं. इतना ही नहीं गांव में पुरुषों को बेहतरीन कुक बनने के लिए 10 साल की लंबी ट्रेनिंग लेना जरूरी है.
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कब शुरू हुई परंपरा
इस परंपरा की शुरुआत उस समय हुई थी. जब पड़ोस के गांवों में अमीर रेड्डी परिवारों ने वनियार्स को खाना बुलाने के लिए शुरू किया था. उस समय तक वनियार्स यह काम नहीं करते थे, लेकिन इस परंपरा के बाद वो किसी भी बड़े आयोजनों में खाना पकाने लगे थे. वहीं रेड्डी परिवारों ने समझ लिया था कि वनियार्स ब्राह्मण परिवारों के लिए बेहतर खाना पका सकते हैं.
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