किसी अपने की मौत होने पर काट दी जाती है महिला की उंगली, बेहद अजीब है ये परंपरा
कुछ जगहों पर आज भी ऐसी कुप्रथा का पालन किया जाता है, जिन्हें सुनकर ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ऐसी ही एक प्रथा है इकिपालिन.
दुनिया के कुछ हिस्सों में आज भी ऐसी अजीब परंपराएं पाई जाती हैं, जो न सिर्फ अमानवीय हैं बल्कि बेहद खतरनाक भी हैं. इन्हीं में से एक है किसी की मौत होने पर महिला की उंगली काटने की परंपरा. इस परंपरा को इकिपालिन कहा जाता है, जो सदियों से चली आ रही है.
यहां अपनों की मौत पर काट दी जाती है महिला की उंगली
ये परंपरा सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन इंडोनेशिया की एक खास जानजाति अब भी इस परंपरा का पालन करती है. दरअसल इंडोनेशिया में रहने वाली ‘डानी’ जनजाति में यदि परिवार के किसी सदस्य की मौत हो जाती है तो उस परिवार की महिला को अपनी उंगली काटनी पड़ती है. ऐसे में घर में जितने सदस्यों की मौत होती जाती है महिला के हाथों की उतनी उंगलियां कटती जाती हैं. इस प्रथा को इकिपालिन (Ikipalin) कहते हैं.
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कैसे काटी जाती है महिलाओं की उंगली?
इस परंपरा के मुताबिक महिला के परिवार में किसी सदस्य की मौत हो जाती है तो परिवाार की महिला की उंगली के ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है. इस कुप्रथा को निभाने के लिए हिलाओं की उंगली को पहले रस्सी से बांधा जाता है, ताकि उसमें खून का संचार रुक जाए, इसके बाद उस उंगली को कुल्हाड़ी से काटकर अलग कर दिया जाता है. इससे होने वाले दर्द को परिवार के सदस्य की मौत के दर्द से कम आंककर इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है.
सरकार ने उठाए कदम
इंडोनेशिया की दानी जनजाति में प्रचलित उंगली काटने की परंपरा एक दर्दनाक और अमानवीय प्रथा है. हाल के सालों में इंडोनेशिया सरकार और मानवाधिकार संगठनों ने इस परंपरा को खत्म करने के लिए कई प्रयास किए हैं. सरकार ने इस परंपरा को गैरकानूनी घोषित किया है और लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं. हालांकि दुनिया में ऐसी कई परंपराएं हैं जिन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है फिर भी उनका पालन किया जा रहा है.
क्यों काटी जाती है उंगली?
इस परंपरा के पीछे कई कारण बताए जाते हैं, जैसे इस समुदाय के लोग मानते हैं कि उंगली काटकर वे मृत व्यक्ति के प्रति अपने शोक को व्यक्त करते हैं और उनकी आत्मा को शांति देते हैं. कुछ का मानना है कि उंगली काटने से मृत व्यक्ति की आत्मा बुरी नजर से बच जाती है. वहीं इसे मृत व्यक्ति के प्रति समर्पण का एक प्रतीक भी माना जाता है. हालांकि इस परंपरा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, ये बस अंधविश्वास पर आधारित है.
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