पाकिस्तान का वो शहर, जहां मुस्लिम नहीं काटते गाय और हिंदू रखते हैं रोज़ा
पाकिस्तान में एक शहर है, जहां हिंदू और मुस्लिम आपसी प्रेम और शांति के साथ रहते हैं. यहां के लोग एक दूसरे के धर्मों का सम्मान करते हैं. क्राइम रेट भी बाकी शहरों की तुलना में सबसे कम है.
Hindu Village in Pakistan: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाला अत्याचार किसी से छुपा नहीं है. अक्सर वहां हिंदुओं पर अत्याचार और मंदिरों को तोड़ने की खबरें आती रहती हैं. हिंदू मंदिरों को निशाना बनाना, उन्हे तोड़ना यहां कोई नई बात नहीं है. इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आजादी के वक्त पाकिस्तान के हिस्से में कुल 408 मंदिर आए थे, लेकिन आज के समय में वहां सिर्फ ही मंदिर बचे हैं. ऐसे में अगर अगर हम पाकिस्तान के ही एक शहर के बारे ये बताएं कि यहां हिंदू और मुस्लिम एक साथ प्रेम और शांति से रहते हैं तो यह बात किसी को भी चौंका सकती है. जी हां, सुनकर आपको हैरानी हो रही होगी लेकिन ये बात सही है. इस शहर में हिंदुओं की आबादी भी मुस्लिमों से ज्यादा है. आइए जानते हैं इस शहर के बारे में...
80 फीसदी हिंदू आबादी
पाकिस्तान के थारपारकर जिले में एक मीठी नाम का शहर है, जो पाकिस्तान के लाहौर से तकरीबन 875 किलोमीटर दूर है. भारत से उसकी दूरी देखें तो गुजरात के अहमदाबाद से यह शहर करीब 340 किलोमीटर दूर है. मीठी शहर में हिंदू-मुस्लिम एकता की अनोखी ही मिसाल देखने को मिलती है. यहां की कुल आबादी लगभग 87 हजार है, जिसमें तकरीबन 80 फीसदी लोग हिंदू हैं. कहा जाता है कि जब भी यहां किसी धार्मिक त्योहार या सांस्कृतिक आयोजन होता है तो हिंदू और मुस्लिम मिल-जुलकर उसमें हिस्सा लेते हैं.
नहीं काटी जाती गाय
बताया जाता है कि यहां हिंदू-मुस्लिम दिवाली और ईद मिल-जुलकर मनाते हैं. हिंदू समुदाय के लोग मुहर्रम के जुलूस में हिस्सा लेते हैं और कई बार तो मुसलमानों के साथ रोज़े भी रखते हैं. वहीं, हिंदुओं के धर्म का सम्मान करते हुए यहां के मुसलमान गाय को नहीं काटते हैं. यहां तक कि वो बीफ भी नहीं खाते हैं. पाकिस्तान के दूसरे शहरों की तुलना में यहां क्राइम रेट बिल्कुल कम है. यहां का क्राइम रेट दर महज दो फीसदी है और सबसे खास बात यह है कि यहां धार्मिक असहिष्णुता कभी भी देखने को नहीं मिलती.
मुस्लिमों ने छोड़ दिया था शहर
मीठी में कई मंदिर हैं, जिनमें श्रीकृष्ण मंदिर सबसे प्रसिद्ध है. कहते हैं कि पूजा के वक्त यहां लाउडस्पीकर्स पर तेज आवाज में अजान नही की जाती है और नमाज के वक्त मंदिरों में घंटियां नहीं बजाई जाती हैं. यहां के मुसलमानों का कहना है कि साल 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना जब मीठी तक पहुंच गई थी तो उन्हें रातोंरात यहां से भागना पड़ा था. हालांकि, यहां के हिंदुओं ने उन्हें फिर से यहां रहने के लिए मनाया और उसके बाद फिर से वो लोग यहां रहने आ गए.
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