भारत के सभी राज्यों की अपनी विशेषता और खासियत होती है. लेकिन आपने देखा होगा कि हर राज्य की भाषा अलग-अलग होती है. लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जहां आज भी हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत बोली जाती है. यहां हर कोई संस्कृत में ही बात करता है. आज हम आपको बताएंगे कि ये गांव कहां पर है और यहां के लोग संस्कृत में क्यों बोलते हैं. 


संस्कृत


बता दें कि कर्नाटक में मत्तूरु एक ऐसा ही गांव है, इस गांव के आसपास के लोग कन्नड़ बोलते हैं. लेकिन इस गांव का क्‍या बूढ़ा, क्‍या बच्‍चा सभी फर्राटे से संस्कृत बोलते हैं. मत्तूरु गांव कनार्टक से 300 किमी दूर तुंग नदी के किनारे बसा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक  इस गांव की आबादी कुल 3000 है. वहीं गांव के बारे में दिलचस्‍प तथ्‍य यह है कि इसे भारत का अंतिम संस्कृत भाषी गांव कहा जाता है. यहां हर शख्‍स संस्कृत से अच्‍छी तरह वाकिफ है. यहां तक कि दीवारों पर भित्ति चित्र भी संस्कृत में लिखे गए हैं. 


कैसे शुरू हुई संस्कृत बोलने की प्रथा


जानकारी के मुताबिक 1981 में संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए गठित संस्था संस्कृति भारती ने मत्तूर में 10 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया था. इसमें पड़ोसी उडुपी में पेजावर मठ के संत समेत कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया था. जब संत ने संस्कृत को संरक्षित करने के लिए मत्तूर में गांव वालों के उत्साह को देखा, तो उन्होंने तुरंत संस्कृत भाषा को अपनाने की गुजारिश की थी. जिसे स्थानीय लोगों ने दिल से स्वीकार कर लिया था.


कहा जाता है कि इस गांव में प्राचीन काल से संस्कृत बोला जाता है. हालांकि एक समय था, जब लोगों ने कन्नड़ बोलना शुरू कर दिया था, लेकिन पेजावर मठ के स्‍वामी की सलाह के बाद यहां के लोग संस्कृत भाषा बोलते आ रहे हैं. बता दें कि मत्तूर एक कृषि प्रधान गांव है, जहां धान और सुपारी की खेती होती है.


मध्य प्रदेश में भी एक गांव


बता दें कि कर्नाटक के अलावा मध्‍य प्रदेश में भी एक ऐसा गांव है, जहां के रहने वाले लोग संस्कृत बोलते हैं. मध्‍यप्रदेश का राजगढ़ जिला मुख्‍यालय से करीब 45 किमी दूर झिरी गांव ने देश में अपनी अलग पहचान बनाई है. इस गांव में रहने वाला हर शख्‍स संस्कृत में ही बात करता है. यहां के लोगों ने संस्कृत भाषा को पूरी तरह से अपने जीवन में ढाल लिया है. गांव की दीवारों पर संस्कृत में श्‍लोक लिखे हैं. यहां लोग अपने दिन की शुरुआत गुड मॉर्निंग से नहीं बल्कि नमो नम: से करते हैं.


संस्कृत भाषा


1000 की आबादी वाले झिरी गांव में महिलाएं किसान, मजदूर यहां तक के छोटे बच्‍चे भी संस्कृत में बात करते हैं. इसकी शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ता विमला तिवारी ने 2002 से की थी. उन्‍होंने गांव में संस्कृत पढ़ाना शुरू किया था. जिसके बाद धीरे-धीरे गांव के लोग इस प्राचीन भाषा के करीब आने लगे और आज पूरा गांव फर्राटेदार संस्कृत बोलता है.


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