सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियों से जितना प्रदूषण होता है... उतना शायद ही किसी चीज से होता हो. हमारा पर्यावरण तेजी से गाड़ियों के धुएं से निकलने वाले कार्बन की वजह से बदल रहा है. पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में कई देश अलग-अलग तरीकों से पर्यावरण को बचाने और कार्बन उत्सर्जन पर रोक लगाने के लिए तमाम तरह के तरीके अपना रहे हैं. इन्हीं तरीकों में से एक है साइकिल को बढ़ावा देना. यानी जहां तक संभव हो आप कार या बाइक की जगह... साइकिल से सफर करें. कुछ यूरोपीय देशों ने साइकिलिंग स्कीम को लागू करने का बढ़िया तरीका ढूंढ निकाला है. तो चलिए आपको उन तरीकों के बारे में बताते हैं.


साइकिल से ऑफिस आने पर मिलते हैं पैसे


यूरोपियन कंट्री बेल्जियम में लोगों को साइकिल से ऑफिस जाने पर पैसे मिलते हैं. यहां तक कि 1 मई 2023 से साइकिल चलाकर ऑफिस जाने वाले पैसे में 0.2 7 यूरो की बढ़ोतरी भी की जा रही है. यह पैसे पर किलोमीटर के हिसाब से मिलते हैं. जबकि, दूसरी और नीदरलैंड में भी साइकल से ऑफिस जाने वालों को सालाना पैसे मिलते हैं. नीदरलैंड में अगर आप रोजाना 10 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं तो आपको साल भर में 480 यूरो यानी भारतीय रुपये में करीब 41 हजार 916 रुपये सरकार की तरफ से दिए जाते हैं. इटली में भी साइकिल से ऑफिस जाने वालों को महीने के लगभग 25 यूरो मिलते हैं.


टैक्स में मिलती है छूट


ब्रिटेन में साइकिल से दफ्तर जाने वाली स्कीम में कंपनियां इंप्लाइज के लिए साइकिल खरीदती हैं... और इसके एवज में कर्मचारियों को मंथली पेमेंट करनी होती है. जिसमें उन्हें टैक्स में भी छूट मिलती है. इस छूट के जरिए वह लगभग 32 फ़ीसदी टैक्स का पैसा बचा लेते हैं. जबकि, लक्जमबर्ग जैसे देश में अगर आप कोई साइकिल या ई-बाइक खरीदते हैं और उसकी कीमत 600 यूरो के आसपास है, तो उसमें आपको 50 फ़ीसदी तक की छूट मिल सकती है.


स्वास्थ्य भी रहता है बेहतरीन


यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लास्गो के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया की जो लोग साइकिल चलाकर अपने ऑफिस जाते हैं उनमें कैंसर का खतरा 45% कम हो जाता है. जबकि, हार्ट से संबंधित बीमारियों का खतरा 46 फीसदी कम हो जाता है. इसके साथ ही अगर आप साइकिल चला कर रोजाना अपने दफ्तर जाते हैं तो आपकी वजह से पर्यावरण भी स्वस्थ रहेगा. यूरोपीय देशों में इस तरह की स्कीम बिल्कुल सक्सेसफुल है. हालांकि, भारत में अभी तक ऐसी कोई स्कीम सरकार की तरफ से जारी नहीं की गई है. भविष्य में अगर ऐसा होता है तो यह देखने वाली बात होगी कि भारत में भी यह स्कीम सफल होती है या नहीं.


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