Independence Day 2024: हमारे देश के सैनिक हर वक्त दुश्मनों से देश की रक्षा करते हैं, लेकिन क्या आप उस सैनिक के बारे में जानते हैं जिसके लिए देश का जज्बा ये है कि वो मरने के 48 सालों बाद भी देश की रक्षा कर रहा है. आपको ये बात सुनने में जरुर अजीब लग रही होगी, लेकिन सिक्किम सीमा पर हरभजन सिंह आज भी देश की रक्षा कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस सीमा पर उनका एक मंदिर भी बना हुआ है. जहां सैनिक दर्शन के लिए भी जाते हैं और उनकी देखभाल भी करते हैं. हरभजन सिंह का डर इतना है कि दुश्मन भी उनके नाम से डरते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि सैनिकों का मानना है कि चीन की ओर से रची जा रही साजिशों के बारे में सैनिक हरभजन पहले से ही बता देते हैं.


चीनी सैनिक भी करते हैं बाबा हरभजन सिंह पर यकीन


बाबा हरभजन सिंह की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि चीन के सैनिक भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा पर यकीन करते हैं और उनसे डरते भी हैं. बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में जब सैनिक जाते हैं तो उन्हें उनके होने का एहसास होता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब भी भारत और चीन की मिटिंग होती है तो बाबा हरभजन सिंह के लिए बकायदा एक कुर्सी खाली रखी जाती है, ताकि वो भी दोनों देशों के बीच होने वाली चर्चाओं में भाग ले सकें.


मरने के बाद भी छुट्टी पर जाते हैं बाबा हरभजन सिंह


सिक्किम बॉर्डर पर तैनात सैनिकों का कहना है कि मरने के बाद भी बाबा बॉर्डर पर अपनी ड्यूटी लगातार करते हैं. इसके लिए बाबा हरभजन सिंह को बकायदा सैलरी भी दी जाती है. सेना में उनकी एक रैंक भी है. कुछ समय पहले तक उन्हें छुट्टी पर पंजाब में उनके गांव भेजा जाता था. हालांकि कुछ लोगों ने जब इसपर आपत्ति जताई तब से उन्हें छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया गया. अब हर साल बारह महीने बाबा ड्यूटी पर रहते हैं.


रोज जूतों में लगा होता है कीचड़ और बिस्तर पर पड़ी होती हैं सलवट


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमें प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाया जाता है. वहीं कमरे में बाबा की सेना की वर्दी और जूते  रखे जाते हैं. लोगों का कहना है कि रोज सफाई करने के बावजूद उनके जूतों में कीचड़ और चादर पर सलवटें मिलती हैं.


कौन थे बाबा हरभजन सिंह?


हरभजन सिंह का जन्म जन्म 30 अगस्त 1946 को गुजरावाला में हुआ था. वो सेना में अपनी सेवाएं महज दो साल ही दे पाए थे कि 2 साल बाद सिक्किम में हुए एक हादसे में उनकी जान चली गई.


दरअसल एक दिन खच्चर से बाबा हरभजन सिंह नदी पार कर रहे थे, तभी नदी के तेज बहाव में वो बह गए. उनका शव नदी के पानी में इतना दूर चला गया था कि दो दिन की गहन तलाशी के बाद भी नहीं मिल सका. इसके बाद हरभजन सिंह एक सैनिक के सपने में आए और उन्हें अपने शव के बारे में बताया. वो सैनिक दूसरे दिन बाकि सैनिकों के साथ उसी जगह पर गया तो उन्हें हरभजन सिंह का शव मिल गया. तभी से बाबा हरभजन सिंह के बंकर को मंदिर का रूप दे दिया गया था.


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