Independence Day 2024: तिरंगा भारत की आन, बान और शान है. ये कितना जरुरी है इस बात से हर कोई बखूबी वाकिफ है. ये महज झंडा ही नहीं बल्कि हमारे देश का प्रतीक है. भारत में स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर दिल्ली के लाल किले से लेकर भारत के कोने-कोने में ध्वजारोहण किया जाता है, लेकिन क्या आप हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास के बारे में जानते हैं? बता दें देश की आजादी से पहले ही हमारे राष्ट्रीय ध्वज को उसकी पहचान मिल गई थी, लेकिन तिरंगे का दर्जा सालों बाद मिला. ऐसे में चलिए 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास पर नजर डालते हैं.
पिंगली वेंकैया ने किया डिजाइन
भारत के राष्ट्रीय ध्वज को साल 1916 में पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था. उन्होने उस समय एक ऐसे झंडे को बनाने के बारे में सोचा था जो सभी देशवासियों को एक धागे में पिरोकर रख सके. उनकी इस पहल में एस.बी. बोमान और उमर सोमानी ने साथ दिया. फिर क्या था इन तीनों ने मिलकर नेशनल फ्लैग यानी हमारे देश का प्रतीक और सम्मान तिरंगा बनाया.
देश की एकता का रखा गया खास ध्यान
साल 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकेया ने देश की एकता को दर्शाते हुए भारत का तिंरगा झंडा तैयार किया. जब तिरंगा तैयार किया गया था उस समय इसमें केसरिया की जगह लाल रंग था. दरअसल लाल हिंदुओं की आस्था का प्रतीक, हरा मुस्लिमों की आस्थाका प्रतीक और सफेद रंग अन्य धर्मों की आस्था का प्रतीक था. फिर इसमें चरखे को भी जगह दी गई.
गांधी जी ने दी अशोक चक्र की सलाह
वैंकेया महात्मा गांधी से काफी प्रभावित हुआ करते थे. लिहाजा उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के लिए उनसे सलाह लेना जरुरी समझा. जब वो गांधीजी के पास गए तो उन्होंने उसके बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने का प्रतीक बने. इसी को मानते हुए तिरंगे में अशोक चक्र को भी जगह दी गई.
कब मिला राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा?
भारत के राष्ट्रीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, जिसके बाद तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा मिला था.
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