भारत का संविधान और कानून देश में हर व्यक्ति और हर राज्य पर लागू होता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में एक गांव ऐसा भी है जहां न ही भारत का संविधान लागू होता है और न ही देश का कानून चलता है. बल्कि इस गांव का अपना अलग संविधान और कानून है. चलिए इस दिलचस्प गांव के बारे में जानते हैं.
इस गांव का है अपना अलग संविधान
हम हिमाचल प्रदेश में स्थित मलाणा गांव की बात कर रहे हैं. ये गांव हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के दुर्गम इलाके में मौजूद है. यहां पहुंचने के लिए कुल्लू से 45 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है. इसके लिए मणिकर्ण रूट से कसोल से होते हुए मलाणा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट के रास्ते जाया जा सकता है. हालांकि यहां पहुंचना आसान नहीं है. इस गांव के लिए हिमाचल परिवहन की सिर्फ एक बस ही जाती है, जो कुल्लू से दोपहर तीन बजे ही निकल जाती है.
भारत का हिस्सा होने के बाद भी हिमाचल प्रदेश के इस गांव की खुद की अदालत है. आपको जानकर हैरानी होगी कि गांव की अपनी संसद भी है, जिसमें दो सदन- ज्योष्ठांग (ऊपरी सदन) और कनिष्ठांग (निचला सदन) है. ज्येष्ठांग सदन में कुल 11 सदस्य हैं, इनमें से तीन कारदार, गुरु व पुजारी होते हैं, जो कि स्थाई सदस्य होते हैं. वहीं बाकि के आठ सदस्यों को ग्रामीण मतदान करके चुनते हैं. इसके अलावा कनिष्ठांग सदन में गांव के हर घर से एक सदस्य प्रतिनिधि होता है. वहीं संसद भवन के तौर पर इस गांव में एक ऐतिहासिक चौपाल है, जहां सारे विवादों के फैसले सुनाए जाते हैं.
भाषा में भी छुपा है रहस्य
मलाणागांव के नियम और भाषा काफी रहस्यमयी है. दरअसल जो भी पर्यटक इस गांव को घूमने आता है वो यहां ठहर नहीं सकता. माना जाता है कि इस गांव में यदि कोई पर्यटक घूमने आता है तो उसे गांव के बाहर ही टेंट लगाकर रहना पड़ता है. इसके अलावा इस गांव में किसी घर या बाहर की दीवार को भी छूना मना है. यदि गलती से भी कोई ऐसा करता है तो उसे जुर्माना भरना पड़ता है. वहीं यहां कनाशी भाषा बोली जाती है. जो काफी रहस्यमयी है. दरअसल ये भाषा कनाशी गांव के अलावा दुनिया में किसी जगह नहीं बोली जाती.
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