Indian Airforce Garud Commando: भारतीय वायु सेना (IAF) ने अपनी स्पेशल फोर्स यूनिट गरुड़ कमांडो बल में अब महिला अधिकारियों को भी शामिल होने की अनुमति दे दी है. बशर्तें महिलाओं को बल में शामिल होने के लिए एयरफोर्स के चयन मानदंडों को पूरा करना होगा. गरुड़ कमांडो का नाम भारत के सबसे खूंखार कमांडो में लिया जाता है. दुश्मन का खात्मा करने वाली भारतीय वायु सेना की ये फोर्स खतरनाक हथियारों से लैस रहती है. इनकी ट्रेनिंग भी इस तरह से होती है कि ये बिना कुछ खाए हफ्ते तक संघर्ष कर सकते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि इनकी ट्रेनिंग किस तरह होती है? इनका क्या काम होता है और इन्हे कितनी सैलरी मिलती है? पढ़िए इस खबर को पूरा...


कब और क्यों बनी ये फोर्स?
फिलहाल गरुड़ कमांडो की सबसे ज्‍यादा तैनाती जम्मू और कश्मीर की जाती है. इन्हें एयरबोर्न ऑपरेशन, एयरफील्ड सीजर और काउंटर टेररिज्म जैसे मसलों से निपटने के लिए ट्रेन किया जाता है. शांति के समय वायुसेना की एयर फील्ड की सुरक्षा करना इनकी एक मुख्य जिम्मेदारी होती है. गरुड़ कमांडो फोर्स का गठन साल 2004 में किया गया था. जब साल 2001 में आतंकियों ने जम्मू और कश्मीर में 2 एयरबेस पर हमला किया तो भारतीय वायु सेना को इस स्पेशल फोर्स की जरूरत महसूस हुई. इनकी ट्रेनिंग भी नेवी के मार्कोस और आर्मी के पैरा कमांडोज की तर्ज पर होती है.


​वालंटियर नहीं होते ये कमांडो
वायु सेना के गरुड़ कमांडो ​वालंटियर नहीं होते हैं, बल्कि उन्हें सीधे स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग के लिए ही भर्ती किया जाता है. एक बार इस फोर्स को जॉइन करने के बाद ये कमांडो अपने पूरे करियर इस यूनिट के साथ ही रहते हैं. गरुड़ कमांडो बनना आसान नहीं होता है. सभी रिक्रूट्स का बेसिक ट्रेनिंग कोर्स 52 हफ्तों का तक चलता है, जोकि इंडियन स्पेशल फोर्सेज में सबसे लंबा है. शुरुआत के तीन महीनों के प्रोबेशन पीरियड में एट्रिशन रेट काफी ज्यादा होता है. इसी बीच अगले चरण की ट्रेनिंग के लिए बेस्ट जवानों की छंटनी भी हो जाती है.


होती है ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग
लगभग ढाई साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद गरुड़ कमांडो तैयार किया जाता है. इस ट्रेनिंग के दौरान इन्हें उफनती नदियों और आग से गुजरना पड़ता है, बिना किसी सहारे पहाड़ पर चढ़ना होता है. भारी बोझ के साथ कई किलोमीटर की दौड़ लगानी पड़ती है और घने जंगलों में रात गुजारनी होती है.


तीन सप्‍ताह की कठिन ट्रेनिंग
इन कमांडो की ट्रेनिंग स्पेशल फ्रंटियर फोर्स, इंडियन आर्मी और नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ भी होती है. इस दौर में सफल होने वाले जवानों को अगले दौर की ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है. उन्हे आगरा के पैराशूट ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है. जहां पर ये मार्कोस और पैरा कमांडोज की तरह ही अपने सीने पर पैरा बैज लगाते हैं. गरुड़ कमांडोज को मिजोरम में काउंटर इन्सर्जन्सी एंड जंगल वारफेयर स्कूल में भी ट्रेनिंग मिलती है. इस संस्थान में अपारंपरिक युद्ध में विशेषज्ञता ट्रेनिंग दी जाती है. यहां दुनियाभर की सेनाओं के सिपाही भी काउंटर-इन्सर्जन्सी ऑपरेशन की ट्रेनिंग लेने आते हैं.


सबसे खतरनाक हथियारों से लैस होते हैं ये कमांडो
अपने ट्रेनिंग के अंतिम दौर में गरुड़ कमांडो को भारतीय सेना के पैरा कमांडोज की सक्रिय रूप से तैनात यूनिट्स के साथ फर्स्ट हैंड ऑपरेशनल एक्सपीरियंस के लिए भी अटैच किया जाता है. गरुड़ कमांडोज Tavor टीएआर -21 असॉल्ट राइफल, ग्लॉक 17 और 19 पिस्टल, क्लोज क्वॉर्टर बैटल के लिए हेक्लर ऐंड कॉच MP5 सब मशीनगन, AKM असॉल्ट राइफल, एक तरह की एके-47 और शक्तिशाली कोल्ट एम-4 कार्बाइन जैसे दुनिया के खतरनाक हथियारों से लैस होते हैं. इनके पास इजराइल में बने किलर ड्रोन्स भी रहते हैं जो बिना किसी आवाज के टारगेट पर मिसाइल फायर कर सकते हैं. 


गरुड़ कमांडो की सैलरी
गरुड़ कमांडो की सैलरी भी पैरा कमांडो व मार्कोस कमांडो की तरह ही होती हैं. अगर आप गरुड़ कमांडो में सब लेफ्टिनेंट की पोस्‍ट पर  हैं तो आपकी सैलरी 72,100 से लेकर 90,600 रुपये के बीच हो सकती है. बता दें कि यह सैलरी पोस्‍ट के हिसाब से बदलती रहती है. गरुड़ कमांडो में सबसे हाईएस्ट सैलरी 2,50000 रुपये तक हो सकती है, जोकि एक कैबिनेट सेक्रेटरी की सैलरी के बराबर है. इसके अलावा भारत सरकार इन्हे कई अन्य सुविधाएं जैसे कि हाउस रेंट अलाउंस ग्रेड पे और कई सुविधाएं बच्चों के लिए और परिवार के लिए भी देती है.


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