दुनियाभर की अधिकांश सेनाओं में आपको कुत्ते दिख जाएंगे. जानकारी के मुताबिक भारतीय सेना में इस समय 25 से ज्यादा फुल डॉग यूनिट्स हैं, वहीं 2 हाफ यूनिट्स भी हैं. बता दें कि सेना में फुल यूनिट में 24 कुत्ते होते हैं. वहीं हाफ यूनिट में कुत्तों की संख्या ठीक आधी यानी 12 होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीय सेना में नौकरी करने वाले इन कुत्तों की कितनी सैलरी होती और रिटायरमेंट के बाद इनका क्या होता है.
कितनी मिलती है सैलरी ?
जानकारी के मुताबिक सेना में भर्ती कुत्तों को हर महीने कोई वेतन नहीं दिया जाता है. लेकिन सेना उनके खानपान और रखरखाव की पूरी जिम्मेदारी लेती है. इतना ही नहीं सेना में भर्ती कुत्ते की देखरेख का जिम्मा उसके हैंडलर के पास होता है. कुत्ते को खाना खिलाना से लेकर उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखना हैंडलर रखता है. वहीं हर कुत्ते का हैंडलर ही सैन्य अभियान के दौरान उनसे अलग-अलग काम कराते हैं.
रिटायरमेंट
सेना की डॉग यूनिट्स में शामिल होने वाले कुत्ते ज्वाइनिंग के 10-12 साल बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं. हालांकि कुछ कुत्ते शारीरिक चोट या हैंडलर की मृत्यु होने से मानसिक परेशानी जैसे कारणों से भी सम्मानजनक तरीके से सेवानिवृत्त कर दिए जाते हैं. इसके अलावा सेना की डॉग यूनिट्स से रिटायर डॉग्स को लोग गोद ले लेते हैं. इसके लिए गोद लेने वाले व्यक्ति को एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने होते हैं, जिसमें वह वचन देता है कि वह उस कुत्ते की आखिरी सांस तक देखभाल करेगा.
हालांकि पहले ऐसा नहीं था. जानकारी के मताबिक शुरुआत में सेना के कुत्तों को अनफिट पाए जाने पर मार दिया जाता था. इसके दो प्रमुख कारण बताए जाते थे. पहला सेना का मानना था कि उच्चस्तरीय प्रशिक्षण पाए ये कुत्ते लोगों के लिए घातक साबित हो सकते हैं. दूसरा एनिमल वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशंस उन्हें सभी सुविधाएं देने में असमर्थ थी. लेकिन सेना ने 2015 में इस चलन को बदला और इन प्रशिक्षित कुत्तों को रिटायरमेंट के बाद ऐसे लोगों को सौंपा जाने लगा, जो इनसे गार्ड का काम ले सकें या बिना काम के जीवनभर ख्याल रख सकें.
कुत्तों का मुख्य काम
सेना की डॉग यूनिट में शामिल कुत्तों का मुख्या काम नशीले पदार्थों से लेकर विस्फोटकों तक का पता लगाने का होता है. इसके अलावा वे सेना के कई जोखिमभरे अभियानों में भी साथ जाते हैं. सेना की डॉग यूनिट्स में शामिल कुत्तों को गार्ड ड्यूटी, गश्त, आईईडी विस्फोटक को सूंघना, बारुदी सुरंगों का पता लगाने, ड्रग्स को पकड़ने, कुछ लक्ष्यों पर हमला करने, हिमस्खलन के मलबे की पड़ताल करने और भगोड़े समेत आतंकियों के छिपने की जगह ढूंढने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है. इनका मुख्य प्रशिक्षण मेरठ के रिमाउंट एंड वेटेरिनरी कॉर्प्स सेंटर एंड कॉलेज में होता है. यहां 1960 में एक डॉग ट्रेनिंग स्कूल स्थापित किया गया था. जानकारी के मुताबिक कुत्तों को यूनिट में शामिल करने से पहले कम से कम 10 महीने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
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