एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी या फिर पाई पाई का हिसाब देना होगा... ये लाइनें आपके लिए नई नहीं होगी. आपने कई बार इन लाइनों को सुना होगा या फिर हो सकता है कि आपने भी इसका इस्तेमाल किया हो. लेकिन, सवाल ये है कि क्या आपको पता है कि आखिर ये फूटी कौड़ी का क्या मतलब है और फूटी कौड़ी देने का क्या मतलब है. जब भी आप किसी से हिसाब करते हैं तो कौड़ी जैसी किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं करते हैं, फिर भी ऐसा क्यों बोलते हैं कि एक कौड़ी नहीं मिलेगी या मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है. 


इतना ही नहीं, कौड़ी के साथ अक्सर लोग धेला, पाई, दमड़ी जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं. तो आज हम आपको बताते हैं कि इस कौड़ी की क्या कहानी है. साथ ही आपको ये भी बताते हैं कि धेला, पाई, दमड़ी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है और इनके पीछे की क्या कहानी है... 


क्यों इस्तेमाल होते हैं ये शब्द?


ऐसा नहीं है कि पहले से चला आ रहा है तो लोग कौड़ी, धेला, पाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इनके पीछे भी एक कारण है. दरअसल, ये सभी शब्द पहले करेंसी की यूनिट के तौर पर इस्तेमाल होते थे. जैसे आज पैसा, रुपया आदि है, वैसे पहले इन सभी शब्दों का इस्तेमाल होता था. जैसे कोई सामान खरीदने के लिए चार कौड़ी, तीन पाई या फिर 10 धेला आदि का भुगतान करना पड़ता था. इसलिए ये सभी शब्द पैसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. अब सवाल है कि आखिर इनमें कौन छोटा और कौन बड़ा है और किस आइटम की कितनी वैल्यू थी.


क्या है कौड़ी की वैल्यू?


दरअसल, जो कौड़ी होती है, उसे ही पैसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. ये कौड़ी दो तरह की होती थी, अगर कोई कौड़ी टूटी हुई है या आधी है तो उन्हें फूटी कौड़ी कहा जाता था. यह पूरी तरह से सेफ कौड़ी होती थी, उसे कौड़ी ही कहा जाता था. ऐसे में जो फूटी कौड़ी होती थी, उसकी वैल्यू कम होती थी. कई रिपोर्ट्स के अनुसार और इन करेंसी का कलेक्शन करने वाले लोगों का कहना है कि तीन फूटी कौड़ी मिलकर एक पूरी कौड़ी बनती थी. अगर कौड़ी फूटी हुई है तो तीन कौड़ी के बराबर है. 


फिर दमड़ी, धेला क्या है?


बता दें कि दमड़ी, धेला आदि पत्थर आदि की तरह होते थे, जो दिखने में सिक्के की तरह थे. फिर बाद में सिक्के भी चलन में गए. कौड़ी के बारे में तो आप समझ गए हैं. इसमें 10 कौड़ी के बराबर एक धेला होता है, जबकि दो दमड़ी के बराबर एक धेला होता था. वहीं दमड़ी से बड़ी ईकाई पाई भी होती है. इसमें डेढ़ पाई से एक धेला बनता था और तीन पाई मिलकर एक पैसा बनता था. पैसे के बाद आप जानते ही हैं कि पैसे की क्या वैल्यू है. इसके बाद 100 पैसे में एक रुपया होता है.


हालांकि, अब यह व्यवस्था पूरी तरफ से खत्म है और अब सिर्फ पैसे और रुपये का इस्तेमाल होता है और ये ही लीगल टेंडर माने जाते हैं. इसके अलावा कौड़ी, पाई आदि का इस्तेमाल अब नहीं होता है. 


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