जब अपने ही हिंदुस्तान में हर किसी के पास नहीं था वोट देने का अधिकार, हैरान कर देगा आपको यह किस्सा
देश में 18 वीं लोकसभा चुनाव के लिए तैयारी जारी है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक वक्त ऐसा भी था, जब सबको वोटिंग का अधिकार नहीं मिला था. जानिए क्या था वो किस्सा.
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देश में आगामी महीनों में 18 वीं लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं. जानकारी के मुताबिक इस बार चुनाव में 1.8 करोड़ फर्स्ट टाइम वोटर वोट डालेंगे. लेकिन आज हम आपको चुनाव का वो किस्सा बताने वाले हैं, जब अपने देश में सबको वोट का अधिकार नहीं था.जानिए आजाद भारत में कब सबको वोट का अधिकार मिला था.
देश में वोट का अधिकार
आज देश में हर व्यक्ति को वोट देने का अधिकार है. लेकिन देश में हमेशा ऐसी व्यवस्था हमेशा नहीं थी. बता दें कि साल 1988 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए संसद ने संविधान में 61वां संशोधन किया था इसके जरिए लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में वोट देने के लिए उम्र 21 से घटाकर 18 साल की गई थी. लेकिन क्या आपको पता है कि आजादी के पहले तो 21 साल वालों को भी वोट देने का अधिकार नहीं था. बता दें कि इस साल 100 साल से ज्यादा के 2.18 लाख वोटर हैं. इसके अलावा 21.5 करोड़ युवा वोटर 18 साल से 29 साल के हैं.
सबको नहीं था वोटिंग का अधिकार
कांग्रेस के नेताओं के दबाव में अंग्रेजों ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत प्रांतीय चुनाव कराए थे. लेकिन उसमें सभी लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया था. साक्षरता, जाति, जमीन-जायदाद और टैक्स पेमेंट जैसे कई पैमाने लगाकर अधिकतर लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया था. उस वक्त बमुश्किल 14% लोगों को वोट देने का अधिकार मिला था.
इसके अलावा 1928 में भारत के संविधान की बुनियादी बातें तय करने के लिए जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कमिटी बनी थी. कमिटी ने वयस्क मताधिकार को सही माना था. पहले गोलमेज सम्मेलन में इस बारे में जो उप-समिति बनी, उसका भी कहना था कि इसे लागू किया जाना चाहिए. हालांकि 1932 में रिपोर्ट देने वाली इंडियन फेंचाइजी कमिटी इस नतीजे पर पहुंची कि वयस्क मताधिकार का फैसला राज्यों पर छोड़ देना चाहिए.
संविधान सभा की फंडामेंटल राइट्स सब-कमिटी और माइनॉरिटीज सब-कमिटी ने कहा कि वयस्क मताधिकार को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया जाना चाहिए. माइनॉरिटीज और फंडामेंटल राइट्स से जुड़ी अडवाइजरी कमिटी ने इस सलाह को ठीक तो माना था. लेकिन सुझाव यह दिया कि मौलिक अधिकार बनाने के बजाय वयस्क मताधिकार की बात को संविधान में कहीं और दर्ज किया जाए. वहीं संविधान के आर्टिकल 326 में यह प्रावधान किया गया कि संसद और विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे. इस तरह 1951-52 के पहले चुनाव से आजाद भारत में वयस्क मताधिकार लागू हो गया था.
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