भारतीय कानून के तहत फांसी की सजा बेहद जघन्य अपराधों के लिए ही दी जाती है. अगर किसी व्यक्ति को फांसी की सजा हो जाती है तो ऐसा नहीं है कि उसे सजा होते ही तुरंत फांसी के फंदे पर लटका दिया जाता है. फांसी देने के लिए भी एक पूरी लंबी प्रक्रिया का पालन करना होता है. इसी प्रक्रिया में एक जगह गंगाराम का काम पड़ता है. चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर ये गंगा राम है कौन और इसे हर फांसी से पहले फंदे पर क्यों लटका दिया जाता है.


कौन है गंगाराम?


किसी अपराधी को फांसी देने से पहले कई चीजों को चेक किया जाता है, ताकि फांसी के दौरान कोई दिक्कत सामने ना आए. यानी जिस रस्सी से फांसी देनी है उसे अच्छे से चेक किया जाता है. इसके बाद फांसी वाली जगह को सही से चेक किया जाता है. इसके बाद आती है गंगाराम की बारी. दरअसल, गंगाराम एक पुतले का नाम है जिसे फांसी वाली रस्सी पर लटका कर डमी फांसी दी जाती है. इसे ऐसे समझिए कि जिसे फांसी देनी है अगर उसका वजन 100 किलो है तो इस पुतले को 150 किलो का बनाया जाता है और फिर इसे फांसी पर लटका के देखा जाता है कि रस्सी टूटेगी तो नहीं.


पुतले का नाम गंगाराम ही क्यों?


सीनियर पत्रकार गिरिजाशंकर ने फांसी की प्रक्रिया को अपनी आंखों से देखा है. उन्होंने इस पूरे मंजर का जिक्र अपनी किताब 'आंखों देखी फांसी' में लिखा है. दरअसल, 1978 में जब रायपुर की एक जेल में बैजू नाम के एक दोषी को फांसी दी जा रही थी, तब वो वहां रिपोर्टिंग के लिए मौजूद थे. अपनी किताब में वो लिखते हैं कि फांसी से पहले जब डमी फांसी के लिए एक पुतले को तैयार किया गया तो उसे गंगाराम नाम दिया गया.


आगे पत्रकार गिरिजाशंकर लिखते हैं कि इस विषय में जब मैंने वहां के जेल अधीक्षक से पूछा तो उन्होंने बताया कि 1968 में जब वो ट्रेनिंग के लिए केंद्रीय जेल जबलपुर में थे तो वहां एक डाकू छिद्दा सिंह को फांसी हुई थी. उस दौरान भी पुतले को गंगाराम कहा गया था. हालांकि, वहां के लोगों को भी इस सवाल का जवाब नहीं पता था कि डमी फांसी के लिए इस्तेमाल किए गए पुतले का नाम गंगाराम ही क्यों होता है.


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