वो भारतीय पीएम जिन्हें रूसी प्रधानमंत्री ने दिया था ओवरकोट, जानिए क्या था वो पूरा किस्सा
आज हम आपको देश के एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताने वाले हैं, पूरी दुनिया जिनकी सादगी की दीवानी थी. उनके कई ऐसे किस्से हैं, जिसको हम सभी लोग याद करते हैं.
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देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री भी हुआ था, जिन्होंने अपना घर का खर्चा चलाने के लिए अखबारों में लेख लिखा है. आपने सही पहचाना है, आज हम देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बात कर रहे हैं. आज हम आपको लाल बहादुर शास्त्री के जीवन का वो किस्सा बताएंगे, जब शास्त्री जी को रूस से एक ओवर कोट मिला था, लेकिन उन्होंने उसे किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दे दिया था.
रूसी पीएम ने भेंट किया ओवरकोट
ये घटना जनवरी 1966 की है. सोवियत संघ की अगुवाई में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते के लिए एक बैठक बुलाई गई थी. जिसमें प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सोवियत संघ के ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान में) गए हुए थे. जहां पर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान भी आए हुए थे. उस वक्त ताशकंद में सर्दी बहुत पड़ रही थी और लाल बहादुर शास्त्री केवल अपना ऊनी कोट पहने हुए थे. रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसिगिन ने उनका पहनावा देखा और ताशकंद की सर्दी देखकर समझ गए थे कि लाल बहादुर शास्त्री बीमार पड़ सकते हैं. यह सोचकर उन्होंने उन्हें एक ओवरकोट भेंट किया, जिसे पहनकर वह सर्दी से बच सकते हैं.
लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने वो कोट नहीं पहना. जब अगले दिन मुलाकात के समय कोसिगिन ने लाल बहादुर शास्त्री को अपना खादी का कोट पहने ही देखा तो चौंककर पूछ भी लिया. कोसिगिन को लगा कि शायद उन्हें कोट पसंद नहीं आया है. लेकिन उन्होंने झिझक के साथ इस बारे में लाल बहादुर शास्त्री से पूछ ही लिया कि क्या आपको कोट पसंद नहीं आया. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि कोट अच्छा ही नहीं, काफी गर्म भी है. लेकिन उसे मैंने अपनी टीम के एक सदस्य को कुछ दिन पहनने के लिए दिया है. असल में वह इस सर्दी में पहनने के लिए अपने साथ गर्म कपड़े लेकर नहीं आया था.
इसके बाद भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति के सम्मान में ताशकंद में एक सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया गया था. इस कार्यक्रम में रूस के प्रधानमंत्री ने पूरी घटना को सार्वजनिक करते हुए कहा था कि सोवियत संघ के लोग भले ही कम्युनिस्ट हैं पर भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तो सुपर कम्युनिस्ट हैं.
अखबार में लेख
कुलदीप नैयर ने आत्मकथा में बताया है कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे अखबारों में लेख लिखें. इसके लिए किसी तरह से वह मान गए थे. इसके बाद चार अखबारों में उनके लेख प्रकाशित होने लगे थे. हर अखबार एक लेख के लिए उन्हें को 500 रुपए का भुगतान करता था, जितना सांसद के रूप में उनका महीने भर का वेतन था. इस तरह दो हजार रुपए हर महीने उन्हें और मिलने लगे थे.
ताशकंद में शास्त्री जी की मौत
10 जनवरी 1966 को ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हो गया था. हालांकि अगले ही दिन यानी 11 जनवरी को वहीं लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था. इसके बाद सबसे पहले उस स्थान पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान पहुंचे थे, जहां लाल बहादुर शास्त्री ठहरे थे. इस दौरान उनके पार्थिव शरीर को देखकर अयूब खान के मुंह से सिर्फ ये निकला था कि ये वो इंसान लेटा है जो पाकिस्तान और भारत को साथ ला सकता था. जब लाल बहादुर शास्त्री जी के पार्थिव शरीर को भारत लाने के लिए ताशकंद के हवाई अड्डे पर लाया गया था. उस वक्त तीनों देशों, सोवियत संघ, भारत और पाकिस्तान के झंडे झुका दिए गए थे. वहीं पार्थिव शरीर को विमान में चढ़ाने के लिए खुद सोवियत के प्रधानमंत्री कोसिगिन और राष्ट्रपति अयूब खान ने कंधा दिया था.
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