Indian Railway: आपने अक्सर ट्रेन चलाने का काम लोको पायलट करते हैं ये बात सुनी होगी, वहीं कुछ जगहों पर आपको ये भी सुनने को मिला होगा कि ट्रेन लोको पायलट नहीं बल्कि स्टेशन मास्टर चलाते हैं. ऐसे में अक्सर आप सोच में पड़ जाते होंगे कि आखिर कौन सी बात सच है? तो चलिए जान लेते हैं कि आखिर स्टेशन मास्टर को ट्रेन चलाने का क्रेडिट क्यों दिया जाता है.


कौन चलाता है ट्रेन?


हर वाहन जैसे कार, जीप, बस या फिर ट्रक में स्टेयरिंग जरूरी होता है. इसी के जरिये इन्हें मोड़ने और चलाने का काम किया जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ट्रेन में कोई स्टेयरिंग नहीं होता. ऐसे में सवाल ये उठता है कि भारी भरकम ट्रेन को जब मोड़ा जाना हो तब क्या किया जाता होगा? और चलते-चलते ये दूसरी पटरी पर कैसे चली जाती है?


तो बता दें कि इसमें सबसे बड़ा योगदान स्टेशन मास्टर का होता है. ऐसा नहीं होता कि लोको पायलट का जहां मन हो वो ट्रेन को वहां घुमा दें, बल्कि ट्रेन के मोड़ने यानी पटरी बदलने के लिए रेलवे का एक कर्मचारी होता है जिसे पॉइंट्समैन कहते हैं. वहीं रेल की पटरी बदलने का निर्णय लोको पायलट नहीं बल्कि स्टेशन मास्टर लेता है. ट्रेन को किस स्टेशन के कौन-से प्लेटफॉर्म पर रोकना है और किस स्टेशन पर नहीं रोकना इसका फैसला रेलवे हेड क्वार्टर द्वारा ही किया जाता है. यही वजह है कि ट्रेन चलाने के श्रेय कई बार लोको पायलट की जगह स्टेशन मास्टर को दिया जाता है.


लोको पायलट का होता है क्या काम?


ट्रेन चलाने का पूरा काम लोको पायलट करता है, इस दौरान भले ही वो गाड़ी को मोड़ नहीं सकता हो, लेकिन गार्ड के साथ तालमेल कर उसे चलाने का काम उसी का होता है. वहीं सिग्नल देखकर ट्रेन को चलाना है या फिर रोकना, ये फैसला भी लोको पायलट ही करता है. रेलवे के साइन बोर्ड्स के आधार पर स्पीड कम करना या फिर बढ़ाने का निर्णय भी लोगो पायलट का ही होता है. इसके अलावा जब रेलवे के साथ संपर्क न हो पाए तो सबसे पिछले डिब्बे पर बैठे गार्ड के साथ तालमेल कर सूजबूझ से ट्रेन चलाने का काम भी लोको पायलट का ही है. ऐसे में ये कहना गलत होगा कि ट्रेन लोको पायलट नहीं चलाते.               


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