ब्रह्मांड का रहस्य इंसान आज से नहीं बल्कि सदियों से सुलझाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, यह इतना विशाल और अनंत है कि इसके हर परत को सुलझा पाना लगभग नामुमकिन है. इसके साथ ही इस ब्रह्मांड की शुरुआत और इसमें मौजूद तत्वों के अस्तित्व की गुत्थी सुलझाना तो और बड़ी बात है. सदियों से दुनिया भर के वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि वो कुछ ऐसा कमाल कर सकें कि ब्रह्मांड का रहस्य सुलझ जाए.


हालांकि, उनसे अभी तक ये नहीं हो पाया. लेकिन कमाल की बात ये है कि जिस भारत ने दुनिया को अंतरिक्ष के बारे में और ग्रहों के बारे में बताया...उसी देश के मूल के एक इंसान ने फिर से दुनिया को ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में मदद की है. चलिए अब आपको बताते हैं कि आखिर इस भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने ऐसा क्या कमाल किया है.


कौन हैं ये वैज्ञानिक


दरअसल, हम जिस वैज्ञानिक की बात कर रहे हैं वो हैं ब्रिटेन में रहने वाले एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक प्रोफेसर विक ढिल्लों. प्रोफेसर विक ढिल्लों ब्रिटेन के शेफील्ड विश्वविद्यालय के भौतिकी और खगोल विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हैं. प्रोफेसर ढिल्लों फिलहाल वहां अल्ट्राकैम परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं.


कौन सा कमाल किया है


आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रोफेसर विक ढिल्लों ने वो गुत्थी सुलझा दी है जो दशकों से वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए थे. दरअसल, उन्होंने अत्याधुनिक कैमरे के जरिये ब्रह्मांड में सबसे भारी रासायनिक तत्वों के निर्माण की गुत्थी सुलझाई है. प्रोफेसर ढिल्लों अपनी रिसर्च पर कहते हैं कि हमारा कैमरा अल्ट्राकैम गामा-रे विस्फोट के जगह को इंगित करने वाला पहला उपकरण है, जो अब तक देखा गया दूसरा सबसे चमकीला उपकरण था. सबसे बड़ी बात कि ये केवल दूसरा सुरक्षित किलोनोवा है जिसका अब तक पता चला है. किलोनोवा हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सोना, प्लैटिनम और यूरेनियम के जैसे आवर्त सारणी के अधिकांश भारी तत्व यहीं पैदा होते हैं.


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