International Chess Day: किसी भी खेल का जुनून किसी पर चढ़ जाए तो वो किसी भी हद तक ले जा सकता है. चेस भी एक ऐसा ही खेल है, मुगल बादशाहों में इसका भी अलग ही क्रेज था. तमाम मुगल बादशाह शतरंज की अलग ही दिवानगी रखते थे. मुगल बादशाह अकबर का पसंदीदा खेल भी शतरंज ही था. इसके लिए मुगलों के जमाने में अंतर्राष्ट्रीय मैच भी आयोजित किए जाते थे. ऐसे में चलिए आज इंटरनेशनल चेस डे (20 जुलाई) पर जहांगीर से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा जानते हैं.


जब शतरंज के खेल में हारने पर राजदूत को बना दिया गया था गधा


मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में शतरंज बहुत खेला जाता था. एक बार उनके दरबार में शतरंज का अंतर्राष्ट्रीय मैच आयोजित किया गया. इस मुकाबले में एक तरफ जहांगीर के खास दरबारी थे तो दूसरी तरफ फारस के राजदूत थे. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों के बीच शतरंज का ये मुकाबला 3 दिनों तक लगातार चलता रहा. एक से बढ़कर एक चालें चली गईं और आखिरी में फारस के राजदूत को हार का सामना करना पड़ा. इस दरबार में एक दिसचस्प बाजी लगी थी कि जो भी हारेगा उसे दरबार में गधे की तरह चलना पड़ेगा. शर्त के मुताबिक हुआ भी कुछ ऐसा ही, फारस के राजदूत को हार का सामना करना पड़ा था लिहाजा उसे ‘गधा’ बनाकर पूरे दरबार में घुमाया गया.


कहां हुई थी शतरंज की शुरुआत?


शतरंज का इतिहास कम से कम 1500 साल पुराना है. इस खेल का आविष्कार भारत के कन्नौज में माना जाताहै. मूलतः इसे अष्टपद अर्थात चौंसठ वर्ग कहा जाता था. बता दें संस्कृत में अष्टपद मकड़ी के लिए उपयोग होता है. इसे आठ पैरों के साथ एक पौराणिक चेकर बोर्ड पर पासा के साथ खेला जाता था. वर्तमान समय की शतरंज की बिसात में हम काले और सफेद रंगों का जो वर्ग देखते हैं वो लगभग 1000 साल पहले ऐसा नहीं था. प्राचीन समय में राजा महाराज शतरंज में प्यादे के रूप में अपने दासों को हाथी, घोड़ा आदि बनाकर खेला करते थे. समय के साथ इसका विस्तार फारस तक हुआ. वहां इसे नया रूप और नाम मिला और इस तरह अष्टपद, शत्रुंज (शतरंज) बना.                                                                    


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