International Chess Day: दुनियाभर में आज वर्ल्ड चेज डे मनाया जा रहा है. ये भारत में ही इजात किया गया खेल है, पौराणिक समय से चले आ रहे इस खेल के सिर्फ राजा महाराजा ही नहीं बल्कि मुगल बादशाह भी बहुत शौकीन हुआ करते थे. इस खेल की बादशाहों में एक अलग ही दीवानगी थी. ऐसे में चलिए जानते हैं कि बादशाहों के जमाने में इस खेल को कैसे खेला जाता था.
राजा-महाराजा ऐसे खेलते थे शतरंज
पुराने जमाने के राजा महाराज हो या फिर मुगल, सभी की पसंद शतरंज हुआ करता था. अकबर से लेकर जहांगीर तक इस खेल को खेलने के बड़े ही शौकी थे. उस समय इस खेल को खेला भी अलग अंदाज में जाता था. जहां राजा महाराजा अपने दासों को शतरंज के प्यादों के रूप में इस्तेमाल किया करते थे, यानी उस समय कोई दास हाथी बनता था, कोई ऊंच तो कोई घोड़ा और कोई सिपाही. राजा को जब किसी प्यादे को आगे बढ़ाना होता था तो वो दास से बोल देते थे और इस तरह वो इस खेल को अलग अंदाज में खेला करते थे. साथ ही उस समय चेस के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कॉम्पिटिशन भी रखे जातते थे.
कैसे हुई शतरंज की शुरुआत?
शतरंज का इतिहास लगभग 1500 साल पुराना बताया जाता है. कहते हैं इस खेल का आविष्कार भारत के कन्नौज में हुआ था. उस समय इसे मूलतः अष्टपद यानी चौंसठ वर्ग कहा जाता था. उस समय संस्कृत में अष्टपद मकड़ी के लिए उपयोग होता है. इसे आठ पैरों के साथ एक पौराणिक चेकर बोर्ड पर पासा के साथ खेला जाता था. मौजूदा समय की शतरंज की बिसात में हम काले और सफेद रंगों का जो वर्ग देखते हैं वो लगभग 1000 साल पहले ऐसा नहीं थे. पुराने समय में राजा महाराज शतरंज में महारत रखा करते थे. समय के साथ इसका विस्तार फारस तक हुआ. वहां इसे नया रूप और नाम मिला और इस तरह अष्टपद, शत्रुंज (शतरंज) बन गया. आज के समय में इसे शतरंज के नाम से जाना जाता है. इस खेल में जीतने वाले को बुद्धिमान समझा जाता है.
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