मार्च आने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात होना शुरू हो जाती है. खैर, ये चर्चा का अलग विषय है कि मुद्दों पर सिर्फ चर्चा ही हो पाती है और कुछ खास काम नहीं हो पाता है. इन मुद्दों में से एक अहम मुद्दा है प्रेग्नेंसी और चाइल्थबर्थ की वजह से होने वाली महिलाओं की मौतें. अगर आंकड़ों के हिसाब से देखें तो हर दो मिनट में एक महिला प्रेग्नेंसी या चाइल्डबर्थ के वक्त दम तोड़ देती है. हर दिन सैकड़ों महिलाओं की इस दौरान मौत हो जाती है. 


8 मार्च को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने जा रही है और इस बार की थीम लिंग समानता को लेकर है. इस मौके पर आज हम आपको उस सच से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिससे जुड़े आंकड़े वाकई हैरान कर देने वाले हैं. यह आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में और भारत में किस तरह महिलाएं एक मुश्किल का सामना करती हैं और सुविधाओं के अभाव में अपना दम तोड़ देती हैं. तो जानते हैं प्रेग्नेंसी और चाइल्डबर्थ की वजह से होने वाली मौत के आंकड़ें क्या कहते हैं...


दुनियाभर में कैसी है स्थिति?


अगर विश्व पटल पर देखें तो हर साल करीब 700-800 महिलाएं प्रेग्नेंसी या चाइल्डबर्थ के दौरान अपना दम तोड़ देती हैं. साल 2020 में भी 800 महिलाओं की मौत हो गई थी, जिसे मातृ मृत्यु कहा जाता है. इससे अंदाजा लगाया गया कि 2020 में हर दो मिनट में एक महिला की मौत हो गई. हालांकि, अब धीरे-धीरे इसमें सुधार आ रहा है और मेटर्नल मॉर्टेलिटी रेशो यानी मातृ मृत्यु दर घट रही है. साल 2000 से 2020 के बीच इन आंकड़ों में 34 फीसदी तक की कमी आई है. 


यूएन इंटर एंजेंसी के तहत पहले एक लाख जन्म पर 342 महिलाओं की मौत हो जाती थी, जो संख्या अब घटकर 233 हो गई है. वहीं, खास बात ये है कि जिन महिलाओं की मौत हो जाती है, उनमें से 95 फीसदी महिलाएं लॉ और लॉअर मिडिल इनकम देशों से हैं. वैसे देखें तो साल 2020 में करीब 287000 महिलाओं की प्रेग्नेंसी की दौरान मौत हो गई थी. 


भारत की क्या है कहानी?


वहीं अगर भारत की बात करें तो भारत में पहले 1990 में मातृ मृत्यु दर 556 थी, जो एक लाख डिलिवरी पर थी. उस वक्त हर साल करीब 1.38 लाख महिलाओं की प्रेग्नेंसी के दौरान आने वाली दिक्कतों की वजह से मौत हो जाती थी. उस वक्त वैश्विक एमएमआर 385 था, जबकि भारत में यह 556 था. अब भारत में भी इसे लेकर काफी काम किया गया है. उदाहरण से समझें तो भारत में पहले प्रति एक लाख डिलिवरी में एमएमआर 130 थी, जो 2018-20 में 97 रह गई. 


भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) की ओर से एमएमआर पर जारी किए गए स्पेशल बुलेटिन के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में 6 अंकों का शानदार सुधार हुआ है और अब यह प्रति लाख/97 जीवित प्रसव पर है. देश ने एमएमआर में प्रगतिशील तरीके से कमी देखी है. यह 2014-2016 में 130, 2015-17 में 122, 2016-18 में 113, 2017-19 में 103 और 2018-20 में 97 रहा है. अब 2030 तक इसे 70 प्रति लाख पहुंचाने का लक्ष्य है. अगर राज्यों के हिसाब से देखें तो केरल की स्थिति काफी ठीक है. इसके बाद महाराष्ट्र (33), तेलंगाना (43), आंध्र प्रदेश (45), तमिलनाडु (54), झारखंड (56), गुजरात (57) और कर्नाटक (69) का नंबर है.


क्यों हो जाती है महिलाओं की मौत?


प्रेग्नेंसी और डिलिवरी के दौरान और बाद में कुछ जटिलताओं की वजह से मौत हो जाती है. दरअसल, ये दिक्कतें लंबे समय से होती रहती हैं और इनका बाद में असर पड़त है.सभी मातृ मृत्यु में करीब 75% मौत के लिए ज्यादा ब्लीडिंग, इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर आदि शामिल हैं. ऐसे में अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकना आवश्यक है. साथ ही महिलाओं को सही जानकारी और चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करवाना जरूरी है. 


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