ईरान और इजरायल के बीच टेंशन अब बढ़ती जा रही है. इजरायल पर मिसाइलों की बारिश करने के बाद, अब इजरायल ईरान के हमले का जवाब देने के लिए प्लान तैयार कर रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि इजरायल या तो ईरान के परमाणु केंद्रों पर हमला करेगा या उसके तेल के ठिकानों पर.


हालांकि, इस बीच 4 अक्तूबर को ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामेनेई ने जोर देते हुए कहा है कि इजरायल इस लड़ाई में लंबे समय तक टिकेगा नहीं. सबसे बड़ी बात कि इजरायल को जवाब देने के लिए उन्होंने बहुत लंबे समय के बाद जनता के बीच आ कर ये बात कही है. ध्यान देने वाली बात ये है कि उन्होंने इस बात को जिस जगह से कहा, उसे 1979 की इस्लामी क्रांति का गढ़ माना जाता है. चलिए आपको इस मस्जिद के बारे में और इसके इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं.


क्या है इमाम खुमैनी मस्जिद का इतिहास


इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस मस्जिद का निर्माण 18वीं शताब्दी में फतह-अली शाह काजर के शासनकाल के दौरान हुआ था. यह मस्जिद काजर युग की बची हुई इमारतों में से एक है. इस मस्जिद को पहले शाह मस्जिद के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में इसे इमाम खुमैनी मस्जिद कहा जाने लगा. ईरान के तेहरान में स्थित इस मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यह 1979 की इस्लामी क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली जगहों में से एक है.


उस दौर में यहां से हजारों ईरानियों को खामेनेई द्वारा संबोधित किया जाता था. कहा जाता है कि इस मस्जिद का इस्तेमाल शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए भी हुआ था. आपको बता दें, इस्लामी क्रांति से पहले ईरान पर शाह मोहम्मद रजा पहलवी का ही शासन था. कहा जाता है कि इन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त था.


किस तरह से बना है ये मस्जिद


इमाम खुमैनी मस्जिद का परिसर लगभग 100,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है. यह मस्जिद ईरान की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है. मस्जिद का केंद्रीय डोम देखने में बेहद खूबसूरत है. इसके अलावा मस्जिद की मीनारें भी इसे दुनिया की सबसे सुंदर मस्जिदों में से एक बनाती हैं. कहा जाता है कि मस्जिद की आंतरिक दीवारों पर कुरान की आयतों और इस्लामी कला के नमूने दिखाए गए हैं.


आज के दौर में इस खास मस्जिद को विशेष रूप से धार्मिक समारोहों और राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस मस्जिद में एक विशाल सभा हॉल है, जहां हजारों लोग एक साथ खड़े हो सकते हैं. कहा जाता है कि इस्लामिक क्रांति के दौरान जब आयतुल्लाह खामेनेई यहां से तकरीर देते थे, तो हजारों लोग उन्हें यहां खड़े हो कर सुनते थे.


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