भारत में आप किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों, जब प्रमोशन या सैलरी बढ़ाने की बात होती है तो कर्मचारी से यही कहा जाता है कि आपकी मेहनत की वजह से आपको ये प्रमोशन या सैलरी इंक्रीमेंट दी जा रही है. अब सवाल उठता है कि ये मेहनत कौन सी थी? ऑफिस में ज्यादा समय बिताने कि या फिर दूसरों से ज्यादा काम करने की? या ऑफिस में सबसे ज्यादा बिजी दिखने या रहने की. आज हम इस आर्टिकल में यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या सबसे ज्यादा बिजी रहने वाला एम्पलाई सबसे अच्छा काम करने वाला होता है या नहीं.
क्या कहती है स्लैक कि रिपोर्ट?
सेल्सफोर्स की सहायक कंपनी स्लैक ने दुनियाभर की कंपनियों के 18000 से ज्यादा डेस्क कर्मचारियों पर अध्ययन कर के एक रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया के अन्य महाद्वीपों के मुकाबले एशिया के कर्मचारी काम में व्यस्त दिखने की सबसे ज्यादा कोशिश करते हैं. एशिया में स्लैक के लिए टेक इवेंट प्लान करने वाले डेरेक लैनी ने इस रिपोर्ट में कहा है कि एशिया में कर्मचारी उस तरह की मीटिंग्स में ज्यादा समय बिताते हैं जहां अपनी अचीवमेंट्स बताई जाती हैं, बजाय इसके कि जहां भविष्य में कैसे आगे बढ़ना है, क्या अचीव करना है...इसकी प्लानिंग होती हो. सबसे बड़ी बात कि इस तरह के कामों में भारतीय कर्मचारी दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अपने प्रदर्शन का बखान करने वाली मीटिंग्स में सबसे ज्यादा समय खर्च करने वाले दुनिया भर के देशों की लिस्ट इस तरह से है-
भारत: 43%
जापान: 37%
सिंगापुर: 36%
फ़्रांस: 31%
यूनाइटेड किंगडम: 30%
ऑस्ट्रेलिया: 29%
जर्मनी: 29%
संयुक्त राज्य अमेरिका: 28%
दक्षिण कोरिया: 28%
इन देशों के कर्मचारी मीटिंग्स की बजाय वास्तविक काम करने में सबसे ज्यादा समय बिताते हैं
दक्षिण कोरिया: 72%
टाई - ऑस्ट्रेलिया: 71%
जर्मनी: 71%
संयुक्त राज्य अमेरिका: 71%
यूनाइटेड किंगडम: 70%
फ़्रांस: 69%
जापान: 63%
सिंगापुर: 63%
भारत: 57%
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
इस सवाल का जवाब जानने के लिए जब हमने राजनीतिक रणनीतिकार और अपनी एक प्राइवेट कंपनी चलाने वाले अतुल मलिकराम जी से बात की तो उन्होंने कहा, ''जरुरी नहीं है कि जो एम्प्लायी ऑफिस में ज्यादा समय देता है, वह अच्छा ही काम करे. काम दो तरह के होते हैं, एक वह, जो किसी के सामने न होने पर किया जाए और दूसरा वह, जो किसी को दिखाने के लिए किया जाए. आप काम को कितने सिस्टेमेटिक तरीके से प्लान करते हैं, यही काम के परिणाम को निर्धारित करता है. इसलिए यह धारणा गलत है कि ज्यादा समय देने वाला एम्प्लॉयी ज्यादा काम करता है. सिस्टेमेटिक तरीके से किया जाने वाला काम कम समय में भी पूरा किया जा सकता है. इसके बाद जो समय बचता है, उसमें आप एडिशनल काम पूरा करें. आपका यह काम निश्चित ही आपको भीड़ से अलग स्थान देगा.
वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया पर इसी सवाल का जवाब देते हुए कैपस्टोन पीपल कंसल्टिंग की सीईओ सुजाता बनर्जी ने एक लेख लिखा है. इनके मुताबिक, सबसे बेहतर बनने के लिए आपको सबसे पहले एक लक्ष्य को निर्धारित करना होता है और फिस उस दिशा में एक एक स्टेप बढ़ाने होते हैं. यानी बेहतर एम्पलाई वो होता है जो एक गोल सेट करे और उसे पूरा कर के फिर दूसरे गोल की ओर आगे बढ़े. जबकि, ऑफिस में कुछ कर्मचारी ऐसे होते हैं, जो आपको हमेशा बिजी दिखते हैं. लग के काम करते हैं. लेकिन उनके काम में कोई प्लानिंग या गोल सेट नहीं होता. जिसकी वजह से वो कंपनी को उस तरह का रिजल्ट दे पाने में सक्षम नहीं होते, जिस तरह का रिजल्ट एक प्लानिंग और लक्ष्य निर्धारित करने वाला एम्पलाई दे सकता है.
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