दुनियाभर में है इस्कॉन मंदिर, लेकिन क्या आप इस संस्था के पहले मंदिर के बारे में जानते हैं?
भारत में आज इस्कॉन के 400 से ज्यादा मंदिर हैं. जबकि, दुनियाभर में इस्कॉन के मंदिरों की संख्या और भी ज्यादा है. खासतौर से अमेरिका और यूरोपीय देशों में इस्कॉन के मंदिर सबसे ज्यादा हैं.
बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिरों को लेकर इन दिनों बवाल चल रहा है. कट्टर इस्लामिक संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम ने तो शुक्रवार की नमाज के बाद इसके खिलाफ बकायदा एक रैली निकाली. इस रैली के दौरान नारे लगाए गए कि इस्कॉन मंदिर के भक्तों को पकड़ो और उनका कत्ल करो.
इसके अलावा प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि इस्कॉन मंदिर पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो वो और बड़ा आंदोलन करेंगे. चलिए आज इसी कड़ी में जानते हैं कि आखिर इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) की स्थापना किसने की और इस संस्था ने अपना पहला मंदिर कहां बनाया.
कब हुई इस्कॉन मंदिर की स्थापना
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) की स्थापना, भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने साल 1966 में की थी. जिन लोगों को लगता है कि इस्कॉन एक विदेशी व्यक्ति की संस्था है तो आपको बता दें कि भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था. शुरूआत में उनका नाम अभय चरण दे था, जो बाद में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद हो गया.
इस्कॉन का पहला मंदिर
जिस साल इस्कॉन की स्थापना हुई, उसी साल अमेरिका के न्यूयॉर्क में पहले इस्कॉन मंदिर का निर्माण किया गया. यानी साल 1966 में दुनिया का पहला इस्कॉन टेंपल न्यूयॉर्क में बना. वहीं भारत में इस्कॉन के पहले मंदिर की बात करें तो ये श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में बना था. इस मंदिर का निर्माण साल 1975 में कराया गया था. भारत में आज इस्कॉन के 400 से ज्यादा मंदिर हैं. जबकि, दुनियाभर में इस्कॉन के मंदिरों की संख्या और भी ज्यादा है. खासतौर से अमेरिका और यूरोपीय देशों में इस्कॉन के मंदिर सबसे ज्यादा हैं. इस्कॉन के सदस्य वैष्णववाद या श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति का संदेश देते हैं.
इस्कॉन का हरे कृष्ण मूवमेंट क्या है
इस्कॉन का हरे कृष्ण मूवमेंट एक धार्मिक और सांस्कृतिक आंदोलन है, जो भगवान श्री कृष्ण की पूजा और भक्ति पर आधारित है. इस आंदोलन की स्थापना 1966 में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादने की थी. इस आंदोलन का उद्देश्य है लोगों को भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को जागृत करने और उन्हें कृष्ण के दिव्य नाम का जप करने के लिए प्रेरित करना है. इसके अलावा इस्कॉन के सदस्य पूरी दुनिया को संदेश देते हैं कि वह शुद्ध शाकाहारी भोजन करें और हिंसा को त्याग कर भगवान कृष्ण की तरह दुनिया को प्रेम बांटे.
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